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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(Gautama) Passions ( anger, pride, deceit, greed) are fires and knowledge, virtuous life and penances are the excellent water. Sprinkled by this water, the fires of passions quenched and they do not burn me. (53)
त्रयोविंश अध्ययन [ २९४
साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो I अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥५४॥
( केशी) हे गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया। मेरा एक और संशय है। उसके विषय में भी मुझे कुछ कहें ॥५४॥
(Kesi) Gautam ! Your intelligence is excellent. You have removed my this doubt. But there is another doubt in my mind, remove also that. (54)
अयं साहसिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिधावई । जंसि गोयम ! आरूढो, कहं तेण न हीरसि ? ॥ ५५ ॥
यह साहसिक, भयंकर और दुष्ट अश्व दौड़ रहा है। गौतम ! तुम उस पर सवार हो । वह तुम्हें उन्मार्ग पर कैसे नहीं ले जाता ? ॥५५॥
The unruly, dreadful and stupid horse is running. You are sitting on its back. Why it does not take you on uneaven path ? (55)
पधावन्तं
निगिण्हामि,
सुयरस्सीसमाहियं । न मे गच्छइ उम्मग्गं, मग्गं व पडिवज्जई ॥५६॥
(गौतम) दौड़ते हुए घोड़े को मैं श्रुत रश्मि ( श्रुतज्ञान की रस्सी - लगाम) से वश में रखता हूँ । अतः मेरे अधीन हुआ वह अश्व उन्मार्ग में नहीं जाता अपितु सन्मार्ग पर ही चलता है ॥५६॥
(Gautama) I control this running horse by the bridle of knowledge. Being controlled it does not go astray and moves on the right path. (56)
अस्से य इइ के बुत्ते ? केसी गोयममब्बवी |
सिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥५७॥
( केशी) अश्व किसे कहा जाता है ? केशी ने गौतम से कहा- पूछा । केशी के यह पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा- ॥५७॥
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(Keśi) Whom do you call the horse? These words of Keśi answered by Gautama thus (57)
मणो साहसिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिधावई ।
तं सम्मं निगिण्हामि, धम्मसिक्खाए कन्थगं ॥ ५८ ॥
(गौतम) मन ही साहसिक, भयंकर और दुष्ट अश्व है जो चारों ओर इधर-उधर दौड़ता रहता है। उसका मैं धर्मशिक्षा द्वारा भली-भाँति निग्रह करता हूँ । अतः वह उत्तम जाति का कन्थक अश्व वन गया है ||५८||
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