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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वाविंश अध्ययन [ २७६
Thus Balarama, Kṛṣṇa, ten-adorables and many men bowing to Bhagawana Ariṣṭanemi returned to Dwārakā city. (27)
सोऊण रायकन्ना, पव्वज्जं सा जिणस्स उ । नीहासा य निराणन्दा, सोगेण उ समुत्थया ॥२८॥
भगवान की प्रव्रज्या के विषय में सुनकर राजकन्या राजीमती का हँसना, प्रसन्नता, आनन्द - सन समाप्त हो गये । वह शोक की अधिकता से व्याप्त हो गई। उसे गहरा शोक हुआ ॥२८॥
Hearing the news of consecration of Arişṭanemi, the laughter, gaity, joy of princess Rajimati forsook her. She was engulfed in sorrow. She felt deep misery. (28)
राईमई विचिन्तेइ, धिरत्थु मम जीवियं ।
जा ऽहं तेण परिच्चत्ता सेयं पव्वइउं मम ॥२९॥
राजीमती ने विचार किया- मेरे जीवन को धिक्कार है। चूँकि मैं उनकी परित्यक्ता हूँ, इसलिए मेरा प्रव्रजित होना ही उचित (श्रेष्ठ) है ॥२९॥
Räjimati thought-shame upon my life. Because I am forsaken by him, therefore it is better for me to be consecrated. (29)
अह सा भमरसन्निभे, कुच्च - फणग - पसाहिए | सयमेव लुंचई केसे, धिइमन्ता ववस्सिया ॥ ३० ॥
अतः धैर्यशालिनी और दृढ़ निश्चयी राजीमती ने कूँची और कंघी से सँवारे हुए भ्रमर के समान काले केशों का अपने हाथ से लोंच किया ॥ ३० ॥
Hence steady and firm determined Räjimati plucked her hairs which were black as bees and dressed with a comb and brush, by her own hands. ( 30 )
वासुदेवो य णं भणइ, लुत्तकेसं जिइन्दियं ।
संसारसागरं घोरं, तर कन्ने ! लहुं लहुं ॥ ३१ ॥
केशलोंच की हुई व जितेन्द्रिय राजीमती से कृष्ण ने कहा- हे कन्ये ! इस घोर संसार सागर को शीघ्रातिशीघ्र पार करो ॥३१॥
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Kriṣṇa said to Rājimati, who was hairless and had subdued her senses-O Girl! Cross this worldly ocean as soon as possible. (31)
सा पव्वइया सन्ती, पव्वावेसी तहिं बहुं ।
सयणं परियणं चेव, सीलवन्ता बहुस्सुया ॥३२॥
शीलवती तथा बहुश्रुत राजीमती ने प्रब्रजित होकर अपने साथ बहुत से स्वजनों और परिजनों को दीक्षित (प्रव्रजित) कराया ॥ ३२ ॥
Chaste and learned Räjimati being consecrated herself caused her relations and family members (specially women) to accept consecration. (32)
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