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30 चित्रों का विवरण युक्त परिचय
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(१) पापकर्मा मनुष्य आयुष्य क्षीण होने पर नरक में उत्पन्न होता है । (२) समतल मार्ग को जानता हुआ भी गाड़ीवाला विषम मार्ग पर जाते हुये धुरी टूट जाने पर शोक - परिताप करता है। (३) संयम आराधना करने वाले सुव्रती की दो गंतियाँ हैं - वह कर्मक्षय कर मोक्ष में चला जाता है अथवा देव लोक में उत्पन्न होता है। (४) सामायिक, पौषध आदि धर्म की आराधना करने वाला सद्गृहस्थ आयुष्य पूर्ण होने पर देव लोक में जाता है।
(१) भोग में शोक : चावल, हरी घास आदि खाकर हृष्ट-पुष्ट होने वाले मेमने को देखकर सूखी घास खाने वाली दुर्बल गाय और बछड़ा एक बार दुःखी होते हैं, परन्तु अन्त में माल खाने वाला मेमना, मेहमान के लिए मारा जाता है और सूखी घास खाने वाली गाय बच जाती है। (अध्ययन से पूर्व का भाग) गाथा १ - ३)
थोड़े के लिए बहुत हानि : (१) एक काकिणी के लिये भिखारी हजार मोहरें खोकर पछताता है। ( गाथा ११) (२) मंत्री द्वारा मना करने पर भी स्वाद के लोभ में अपथ्य भोजन (आम) करके राजा रोगी हो गया और एक दिन जीवन से हाथ धो बैठा। (गाथा ११ )
(१) तीन वणिक पुत्र पिता से समान धन लेकर व्यापार के लिये जाते हैं।
(२) एक भरपूर लाभ कमाकर एक मात्र मूल धन लेकर तथा एक मूल धन हारकर दरिद्र होकर लौटता है । ( गाथा १४-१५)
(१) मूल धन के समान मनुष्य गति है। लाभ के समान देवगति है। मूलधन की हानि के समान जीव की नरक एवं तिर्यंच गति है। (गाथा १६) (२) मनुष्यभव के काम-भोग सूखे घास पर गिरी ओस बिन्दु के समान क्षणिक एवं तुच्छ है, जबकि देवताओं के दिव्य-सुख समुद्र के समान विशाल है।
(१) राज सभा में कपिल - एक मासा सोना पाने के लिये आधी रात में घूमते हुये कपिल को पहरेदारों ने चोर समझकर पकड़ लिया और प्रातः राजा के सम्मुख उपस्थित किया। (२) एक मासा स्वर्ण की इच्छा असीम तृष्णा बन गई। अपार धन, स्वर्णमुद्रा, ऐश्वर्य, सेना, स्त्रियाँ, भवन सब कुछ माँग लेने पर भी कपिल की तृष्णा शान्त नहीं हुई । ( गाथा १७ )
(१) कपिल ने आकर राजा से कहा- मुझे सन्तोष धन मिल गया, अब कुछ भी नहीं चाहिये। कपिल मुनि बन गये । ( २ ) जंगल में पाँच सौ चोरों को मधुर स्वर में धर्म उपदेश सुनाया तो सभी चोर प्रबुद्ध होकर उनके शिष्य बन गये ।
नमिराज का जागरण : (१) नमिराज के दाह ज्वर की शान्ति के लिये रानियों ने चन्दन घिसना प्रारंभ किया तो हाथ की चूड़ियों ( कंगन) का शोर राजा को असह्य होने लगा । (२) रानियों ने सिर्फ एक-एक कंगन हाथ में रखा, जिस कारण चन्दन घिसने पर भी आवाज नहीं हुई। राजा को शान्ति अनुभव होने पर हल्की सी नींद लग गई।
(१) नमिराज के पूछने पर पट रानी ने कहा- हमारे हाथ में सिर्फ एक ही कंगन है, फिर एक कंगन से आवाज कैसे होगी ? राजा के चिन्तन ने नया मोड़ लिया, “संसार में जहाँ अनेक हैं, वहीं दुःख है, संघर्ष है। जहाँ एक है, वहाँ पर सुख-शान्ति है।" (पूर्वालोक)
(१) एकत्वभाव से प्रबुद्ध होकर नमिराज ने राज्य, परिवार, वैभव, यहाँ तक कि अपने शरीर के वस्त्र आभूषणों का भी त्यागकर वन की ओर प्रस्थान कर दिया। मंत्री, पुरोहित, सेनापति और रानियाँ आदि ने रोकने का बहुत प्रयत्न किया, परन्तु वैराग्य की ओर बढ़ते दृढ़ चरण नहीं रुके। (गाथा ३)
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