________________
चित्रों का विवरण युक्त परिचय 31 २२ ९ प्रव्रज्या के लिये प्रस्तुत हुये नमिराजर्षि के सामने ब्राह्मण वेषधारी देवेन्द्र प्रश्न किया- आज मिथिला नगरी में हृदय विदारक कोलाहल क्यों सुनाई दे रहा है ? नमि राजर्षि उत्तर देते हैं - एक विशाल चैत्य वृक्ष के ढह जाने से आश्रयहीन हुए पक्षी क्रन्दन कर रहे हैं; उसी का यह कोलाहल है। ( गाथा ९-१० )
२३ १० ( १ ) यह जीवन वृक्ष के पत्ते की तरह नश्वर है। हरी-हरी कौपलें (शिशु काल) समय आने पर पीला पत्ता बनकर ( जरा-जीर्ण होकर) झड़ जाती है। (२) कुश (डाभ) की नोंक पर टिकी हुई ओस की बूँदें कुछ समय तक मोती की भाँति चमक कर धूप लगते ही सूख जाती हैं ऐसा क्षणिक है मानव जीवन । ( गाथा १-२ )
२४ १० (१) पृथ्वीकाय-पर्वत, मिट्टी, मणिरत्न आदि । (२) अप्काय- समुद्र, सरोवर, नदी, कूप, हिम आदि का जल । (३) अग्निकाय - सभी प्रकार की अग्नियाँ । (४) वायुकाय अनेक प्रकार की हवा । (५) वनस्पति काय - वृक्ष, फूल, कन्द-मूल आदि। (६) द्वीन्द्रियकाय-शंख, सीप, कृमि आदि । (७) त्रीन्द्रियकाय - चींटी, मकोड़े आदि । (८) चतुरिन्द्रियकाय मक्खी, मच्छर, मकड़ी आदि । (९) पंचेन्द्रिय - तिर्यंच, पशु - गाय, घोड़ा आदि, पक्षी - कबूतर, चिड़िया आदि, जलचर- मछली आदि, उरपरिसर्प- सांप आदि । भुजपरिसर्पनेवला आदि । (१०) नारक। (११) देव सूर्य, चन्द्र आदि ज्योतिष्क देव, वैमानिक देव, असुर, नागकुमार आदि । मनुष्य-आर्य अनार्य आदि। इस प्रकार संसार चक्र में जीव सतत परिभ्रमण करता रहा है (गाथा ५ से १६)
३५ १० (१) तुम्हारा शरीर जरा से जीर्ण और अशक्त हो गया है। (गाथा २५) (२) शरदकालीन कमल जैसे पंक से अलिप्त रहता है, उसी प्रकार तुम विषयों से अलिप्त रहो । ( गाथा २८) (३) धन, स्त्रियाँ, भोग सामग्री को त्यागकर पुनः भोग की इच्छा मत करो । ( गाथा २९-३) (४) तुम अज्ञान एवं आसक्ति के कंटक पथ को छोड़कर ज्ञान एवं श्रद्धा के राजपथ पर बढ़ चले हो । (५) जैसे दुर्बल भार वाहक ऊबड़-खाबड़ पथ पर चलता हुआ पछताता है, तुम्हारी यह स्थिति नहीं हो। ( गाथा ३२-३३)
११ बहुश्रुत महिमा : १५ उपमाएँ जिस प्रकार शंख में रखा हुआ दूध निर्विकार रहता है। उसी प्रकार बहुश्रुत में धर्म एवं श्रुत निर्विकार रहकर शोभित होते हैं। (स्पष्टीकरण चित्रों में देखें) १. हरिकेश ने देखा, “ जहरीले सांप को सभी मारते हैं, परन्तु विष रहित अलसिये को कोई नहीं मारता", वह सोचता हुआ गहरा उतर गया। (पूर्वालोक)
(१) यक्ष-पूजा करके आई राजकुमारी भद्रा ने जब एक कुरूप मुनि को वहाँ बैठा देखा तो उसने घृणा पूर्वक मुनि के ऊपर थूक दिया। (२) मुनि भक्त यक्ष ने क्रुद्ध होकर राजकुमारी को मूर्च्छित कर दिया। जब वह किसी भी उपचार से स्वस्थ नहीं हुई तो यक्ष ने स्वप्न में निर्देश दिया - राजकुमारी मुनि के साथ विवाह करेगी तभी स्वस्थ हो पाएगी। (पूर्वालोक)
(१) राजा ने विविध उपहारों के साथ राजकुमारी को सजाकर मुनि से पत्नी रूप में स्वीकारने की प्रार्थना की। (२) यज्ञशाला की ओर मुनि को भिक्षा के लिए आया देखकर ब्राह्मणों ने क्रोधित होकर मुनि को दण्डों आदि से पीटा। भद्रा राजकुमारी ने उन्हें यह दुष्कृत्य करने से रोक कर मुनि के तपः प्रभाव का वर्णन किया। (गा. ९-२३)
(१) मुनि-भक्त यक्ष ने क्रुद्ध होकर यज्ञ की सब सामग्री बिखेर दी। ब्राह्मण कुमारों की दुर्दशा की । तब राजकुमारी ने ब्राह्मणों को समझाया - यह सब मुनि के अपमान का दुष्फल है उनसे क्षमा मांगो। (गा. २४-३०) (२) भयभीत ब्राह्मणों ने मुनि से क्षमा माँगी और भिक्षा ग्रहण करने की प्रार्थना की। मुनि ने शान्त भाव से भिक्षा ग्रहण की। (गा. ३४ )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org