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२६५] एकविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ,
पूजा और प्रतिष्ठा में गर्वित (उन्नत) और गर्दा में हीनभावना (अवनत) ग्रस्त न होने वाला महर्षि पूजा और गर्दा से अलिप्त रहे। वह विरत संयमी सरलता को स्वीकार करके निर्वाण मार्ग-मोक्ष मार्ग को प्राप्त करता है ॥२०॥
Ungripped by the feelings of superiority complex by respect and honour and by inferiority complex by blame, and should not care for both of these. That disinclined restrained accepting simplicity enters the path of salvation. (20)
अरइरइसहे पहीणसंथवे, विरए आयहिए पहाणवं ।
परमट्ठपएहिं चिट्ठई, छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥२१॥ जो अरति और रति को सहता है, संसारी जनों से अति परिचय नहीं रखता है, विरक्त है, आत्मकल्याण की साधना करता है, प्रधानवान है, शोक और ममत्व रहित है, अकिंचन है, वह सम्यग्ज्ञान आदि परमार्थ पदों में-मोक्ष प्राप्ति के साधनों में रत रहता है ॥२१॥
Who endures rati and arati-meaning neither pleasure nor grief by anything, cuts off link with worldly men (beings), disinclined, practises the benefits of soul, deprived of sorrow and myness, having nothing as his own; he strives for the highest good and its means-right knowledge-faith-conduct.(21)
विवित्तलयणाई भएज्ज ताई, निरोवलेवाइ असंथडाई ।
इसीहि चिण्णाइ महायसेहिं, काएण फासेज्ज परीसहाई ॥२२॥ प्राणियों की रक्षा करनेवाला साधु महान यशस्वी ऋषियों द्वारा स्वीकृत, लेप आदि कर्म से रहित, बीज आदि से रहित, एकान्त स्थानों का (विविक्त लयणाइ) सेवन करे और परीषहों को सहे ॥२२॥
Saviour of all living beings-the ascetic should take bed or lodging distant from others and that should also be granted or prescribed by the great glorious seers, devoid of liniment, seeds and in lonely places. (22)
सन्नाणनाणोवगए महेसी, अणुत्तरं चरिउं धम्मसंचयं ।
अणुत्तरेनाणधरे जसंसी, ओभासई सूरिए वऽन्तलिक्खे ॥२३॥ सद्ज्ञान से ज्ञान को प्राप्त करने वाला महर्षि, अनुत्तर धर्मसंचय का आचरण करके, अनुत्तर ज्ञानधारक यशस्वी धर्मसंघ में उसी प्रकार प्रकाशमान होता है जैसे अन्तरिक्ष में सूर्य ॥२३॥
Acquirer of true and right knowledge the great sage, practising the accumulation of supreme religion, glorious with supreme knowledge lightens in the religious order, as the lustrous sun in sky. (23)
दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं, निरंगणे सव्वओ विप्पमुक्के । तरित्ता समुदं व महाभवोघं, समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥२४॥
-त्ति बेमि ।
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