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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
जहित्तु संगं च महाकिलेसं, महन्तमोहं कसिणं भयावहं । परियायधम्मं चऽभिरोयएज्जा, वयाणि सीलाणि परीसहे य ॥११॥
श्रमणत्व धारण करने के उपरान्त साधु महाक्लेशकारी, महामोह और भयकारी आसक्ति (संग) को त्यागकर साधुता (परियायधर्म) में, व्रत में, शील में और परीषहों को समभाव पूर्वक सहन करने में अभिरुचि रखने वाला बने ॥११॥
२६३ ] एकविंश अध्ययन
After accepting sagehood the ascetic abandoning the worldly attachment which is the cause of great distress, great infatuation and full of dangers; he should be inclined to asceticism (परियाय धम्मं ), vows, virtues and endurance of troubles with even mind (11)
अहिंस सच्चं च अतेणगं च तत्तो य बम्भं अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंच महव्वयाणि, चरिज्ज धम्मं जिणदेसियं विऊ ॥१२॥
विद्वान साधु अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह - इन पाँच महाव्रतों को स्वीकार करके जिनेन्द्र भगवान द्वारा उपदिष्ट धर्म का आचरण करे ॥ १२ ॥
Witty ascetic accepting the five great vows, ( ! ) not to injure or non-violence, (2) truthfulness (3) non-stealing (4) celibacy and (5) non-possession; should follow the religious order prescribed by Jinendra Bhagawäna, (Jina) (21)
सव्वेहिं भूएहिं दयाणुकम्पी, खन्तिक्खमे संजय बम्भयारी | सावज्जजोगं परिवज्जयन्तो, चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए ॥१३॥
भिक्षु सभी जीवों के प्रति दया करुणा रखे, क्षमा से दुर्वचनों को सहन करे, संयत हो, ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला हो, पापाचार (सावद्ययोग) का परित्याग करे और इन्द्रियों को भली-भाँति संवरण करके विचरण करे ॥१३॥
Mendicant should have compassion on all living beings, endure the ill-words by forgiveness, be restrained, observe celibacy fully, renounce all the sinful activities and completely subduing senses he should wander. (13)
कालेण कालं विहरेज्ज रट्ठे, बलाबलं जाणिय अप्पणी य । सीहो व सद्देण न संतसेज्जा, वयजोग सुच्चा न असब्भमाहु ॥ १४ ॥
अपने बलाबल-शक्ति को जानकर साधु समय के अनुसार राष्ट्रों में विहार करे । सिंह के समान भयभीत करने वाले शब्दों को सुनकर भी संत्रस्त न हो और दुर्वचन सुनकर भी असभ्य वचन न बोले ॥१४॥
Testing his own weakness and strength, i. e., knowing his power and capability ascetic should wander in several nations according to the time. Never be frightened by dreadful vords like the roar of lion, and hearing the ill-words should not speak improper words (14)
उवेहमाणो उ परिव्वज्जा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा । न सव्व सव्वत्थ ऽभिरोयएज्जा, न यावि पूयं गरहं च संजए ॥१५ ॥
संयत साधु प्रतिकूलताओं की उपेक्षा करता हुआ प्रिय और अप्रिय ( अनुकूलता - प्रतिकूलता ) - सब को सहन करे, सर्वत्र सब की (मनोज्ञ वस्तुओं की इच्छा न करे और न ही पूजा तथा गर्हा की अभिलाषा करे ॥१५॥
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