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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकविंश अध्ययन [२६२
That householder merchant (trader) reached safely to his home Campā city. That child grew up in his house surrounded by comforts. (5)
बावत्तरि कलाओ य, सिक्खए नीइकोविए ।
__जोव्वणेण य संपन्ने, सुरूवे पियदंसणे ॥६॥ उस (समुद्रपाल) ने बहत्तर कलाओं की शिक्षा प्राप्त की तथा नीति निपुण हो गया। युवा होने पर वह सबको सुरूप और प्रिय लगने लगा॥६॥
He learned the seventytwo arts (of man) and became expert in world behaviour. He was in the bloom of youth, with fine figure and good looks. (6)
तस्स रूववइं भज्जं, पिया आणेइ रूविणीं ।
पासाए कीलए रम्मे, देवो दोगुन्दओ जहा ॥७॥ उसके पिता (पालित व्यवसायी) ने रूपिणी नाम की एक सुन्दर कन्या के साथ उसका विवाह कर दिया। अव वह (समुद्रपाल) दोगुन्दक देवों के समान अपने सुन्दर प्रासाद (भवन) में पत्नी के साथ क्रीड़ा- मग्न हो गया ॥७॥
His father married him to a beautiful youth (maiden) Rūpini, he began to enjoy pleasures with his wife like Dogundaka gods. (7)
अह अन्नया कयाई, पासायालोयणे ठिओ ।
वज्झमण्डणसोभागं, वझं पासइ वज्झगं ॥८॥ किसी समय वह अपने सुरम्य भवन के आलोकन (गवाक्ष) में बैठा था। उसने वध्यचिन्हों से युक्त एक पुरुष को नगरी से बाहर वध स्थान की ओर (राज सेवकों द्वारा) ले जाते हुए देखा ॥८॥
Once he was sitting by the small window of his chamber. He saw a man sentenced to death, with the tokens of to be killed, dressed for execution and taken by the king-servants to the place of punishment-killing. (8)
तं पासिऊण संविग्गो, समुद्दपालो इणमब्बवी ।
अहोऽसुभाण कम्माणं, निज्जाणं पावगं इमं ॥९॥ उस पुरुष को देखकर संविग्न समुद्रपाल ने कहा-अहो ! यह अशुभ कर्मों का दुखदायी फल है ॥९॥
Agitated by this sight, Samudrapāla uttered-Oh ! it is the dreadful result of bad deeds. (9)
संबुद्धो सो तहिं भगवं, परं संवेगमागओ ।
आपुच्छ ऽम्मापियरो, पव्वए अणगारियं ॥१०॥ इस प्रकार संविग्न हुआ वह (समुद्रपाल) महात्मा (भगवं) सम्बुद्ध हो गया। माता-पिता से पूछकर उनकी अनुमति प्राप्त करके उसने श्रमणत्व (अणगारियं) ग्रहण कर लिया ॥१०॥
Thus the noble soul Samudrapāla become enlightened and with the permission of his parents he accepted the quithome mendicant-order. (10)
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