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२६१] एकविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एगविंसइमं अज्झयण: समुद्दपालीयं एकविंश अध्ययन : समुद्रपालीय
चम्पाए पालिए नाम, सावए आसि वाणिए ।
महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महप्पणो ॥१॥ चम्पानगरी का निवासी पालित व्यवसायी श्रावक था और वह महापुरुष भगवान महावीर का शिष्य (अनुयायी) था ॥१॥
Inhabitant of Campā city, the trader Pälita was a householder and pupil (follower) of Bhagawana Mahavira. (1)
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निग्गन्थे पावयणे, सावए से विकोविए ।
पोएण ववहरन्ते, पिहुण्डं नगरमागए ॥२॥ वह पालित श्रावक निर्ग्रन्थ प्रवचन में प्रवीण था। एक बार वह जलयान से व्यापार (समुद्री व्यापार) करता हुआ पिहुण्ड नगर में जा पहुँचा ॥२॥ He was well versed in Jainology. Once trading by ship he approached Pihunda city (2)
पिहुण्डे ववहरन्तस्स, वाणिओ देइ धूयरं ।
तं ससत्तं पइगिज्झ, सदेसमह पत्थिओ ॥३॥ पिहुण्ड नगर में जब वह व्यापार कर रहा था, उस समय किसी वणिक ने अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया। अपनी उस गर्भवती पत्नी को साथ लेकर पालित अपने देश को चल दिया ॥३॥
While he was doing business in Pihunda city, a merchant married his daughter to him. Pălita returned to his country with his pregnant wife.
अह पालियस्स घरणी, समुद्घमि पसवई ।
अह दारए तहिं जाए, 'समुद्दपालि' त्ति नामए ॥४॥ सागर यात्रा के दौरान पालित की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। चूँकि शिशु का जन्म सागर के बीच में हुआ था, इसलिए उस वालक का नाम समुद्रपाल रखा गया ॥४॥
During voyage his wife gave birth to a child in the ship, at sea. Being bom at sea the child named as Samudrapāla. (4)
खेमेण आगए चम्पं, सावए वाणिए घरं ।
संवड्ढई घरे तस्स, दारए से सुहोइए ॥५॥ - वह वणिक श्रावक कुशलतापूर्वक चंपानगरी में अपने घर आ गया। वह बालक (समुद्रपाल) उसके घर
में सुख से रहने लगा ॥५॥ Jain Education International
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