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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पोल्ले व मुट्ठी जह से असारे अयन्तिए कूडकहावणे वा । राढामणी वेरुलियप्पगासे, अमहग्घए होइ य जाणएसु ॥ ४२ ॥
विंशति अध्ययन [ २५४
जिस प्रकार पोली (खाली) मुट्ठी, अयंत्रित - अप्रमाणित खोटा सिक्का और काच मणि, यद्यपि वैडूर्य मणि के समान चमकती है लेकिन जानकारों की दृष्टि में इनका कोई मूल्य नहीं होता ( इसी प्रकार चारित्र - गुणों से शून्य मात्र वेशधारी मुण्डित भी निर्मूल्य होता है) ॥ ४२ ॥
As the empty like a clenched fist, invalid false coin and cultured jewel-the jewel of glass, though they glitters more; but in the view of wise men they bear no value. In the same way the shaven crown, but lacking conduct-virtues bears no value. (42)
कुसीललिंगं इह धारइत्ता, इसिज्झयं जीविय वूहइत्ता । असंजए संजयलप्पमाणे, विणिघायमागच्छइ से चिरंपि ॥ ४३ ॥
इस जन्म में जो आचारहीनों का वेश ( कुशील लिंग) तथा रजोहरण आदि श्रमण चिन्ह (इसिज्झय ) धारण करके जीविका चलाता है तथा असंयत होकर भी अपने आपको संयत कहलाता है वह दीर्घकाल तक जन्म-मरण की परम्परा को प्राप्त होता है ॥ ४३ ॥
In this life who earns his livelihood by the robes of other creeds and tokens of Jain sages and being himself unrestrained pretends to be as restrained; he undergoes the cycle of births and deaths for a long time. (43)
विसं तु पीयं जह कालकूडं, हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं । एसे व धम्मो विसओववन्नो, हणाइ वेयाल इवाविवन्नो ॥ ४४ ॥
जिस प्रकार पिया हुआ कालकूट विष, उलटा पकड़ा हुआ शस्त्र और अनियन्त्रित वैताल नाशकारी होते हैं, उसी प्रकार विषय-विकारों से युक्त धर्म भी साधक के लिए विनाशकारी होता है ॥ ४४ ॥
As drank dreadful poison ( कालकूट विष ), handled awkward weapon and uncontrolled demon of funeral abode are harmful or killers. In the same way the religious rituals-religion mixed with sensuality becomes harmful. (44)
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जे लक्खणं सुविणं पउंजमाणे, निमित्त कोऊहलसंपगाढे । कुहेडविज्जासवदारजीवी, न गच्छई सरणं तम्मि काले ॥४५ ॥
जो लक्षण शास्त्र, स्वप्नशास्त्र, निमित्तशास्त्र, कौतुक - इन्द्रजाल आदि असत्य और आश्चर्य उत्पन्न करने वाली विद्या (कुहेड) एवं आम्नवद्वारों में आसक्त होता है तथा इनके द्वारा अपनी जीविका चलाता है, उनके फल भोगते समय कोई भी उसका सहायक अथवा रक्षक नहीं होता ॥४५ ॥
Who indulges himself foretelling the good or bad effects by the signs of body, dreams, augury, superstitious rites, the cherishmas, untruth, magic tricks, spells, and the channels of inflow of karmas, lives by these; at the time of retribution, none can be helper and refuge to him. (45)
तमंतमेणेव उ से असीले, सया दुही विप्परियासुवेइ । संधावई नरगतिरिक्खजोणिं, मोणं विराहेत्तु असाहुरूवे ॥४६॥
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