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२४९] विंशति अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
न तुम जाणे अणाहस्स, अत्थं पोत्थं व पत्थिवा !
जहा अणाहो भवई, सणाहो वा नराहिवा ? ॥१६॥ (श्रमण) हे पृथ्वीनाथ ! तुम अनाथ शब्द और उसके परमार्थ को नहीं जानते कि कोई व्यक्ति किस प्रकार अनाथ अथवा सनाथ होता है-॥१६॥
(Monk) O king ! You do not know the meaning and subtle truth of the word without protector (अनाथ) and how a person becomes with and without protection. (16)
सुणेह मे महाराय ! अवक्खित्तेण चेयसा ।
जहा अणाहो भवई, जहा मे य पवत्तियं ॥१७॥ हे राजन् ! एकाग्रचित्त होकर सुनो कि कोई व्यक्ति कैसे अनाथ होता है और मैंने जिस आशय से इस शब्द का प्रयोग किया है ॥१७॥
Oking! Listen with concentrated mind that how a man becomes without protection, and with what purpose I have uttered this word. (17)
कोसम्बी नाम नयरी, पुराणपुरभेयणी ।
तत्थ आसी पिया मज्झ, पभूयधणसंचओ ॥१८॥ प्राचीन नगरों में अतिसुन्दर कौशाम्बी नाम की नगरी थी। वहाँ मेरे पिता निवास करते थे। उनके पास प्रचुर मात्रा में धन का संचय (संग्रह) था ॥१८॥
Among the ancient towns, there is a very beautiful city named Kausambi In that town my father inherited. He has abundant accumulation of wealth. (18)
पढमे वए महाराय ! अउला मे अच्छिवेयणा ।
अहोत्था विउलो दाहो, सव्वंगेसु य पत्थिवा ! ॥१९॥ महाराज ! प्रथम वय-युवावस्था में मेरी आँखों में अतुल-अत्यधिक तीव्र वेदना उत्पन्न हुई। हे राजन् ! उसके कारण मेरे सभी अंगों में तीव्र दाह होने लगा ॥१९॥
Oking! In my prime of life-youth, I caught severe eye-pain. Due to that pain a severe burning aroused in my all parts of body. (19)
सत्थं जहा परमतिखं, सरीरविवरन्तरे ।
पवेसेज्ज अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा ॥२०॥ जैसे कोई क्रुद्ध शत्रु शरीर के मर्मस्थानों में परम तीक्ष्ण शस्त्र भौंक दे तब जैसी घोर पीड़ा होती है, वैसी तीव्र पीड़ा मेरी आँखों में हो रही थी ॥२०॥
My eyes ached as if any angry enemy penetrate a sharp tool in vital parts of my body. (20)
तियं मे अन्तरिच्छं च, उत्तमंगं च पीडई । इन्दासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ॥२१॥
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