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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
विंशति अध्ययन [ २५०'
इन्द्र के वज्र प्रहार से जैसी मर्मान्तक पीड़ा होती है, वैसी ही परम दारुण वेदना मेरे त्रिक-कटि प्रदेश, अन्तरेच्छ- हृदय और उत्तमांग-मस्तक में हो रही थी ॥२१॥
As the bitter poignant agony created by the stroke of thunderbolt of king of gods, the same bitter and acute agony was aching my waist, heart and head. (21)
उट्टिया मे आयरिया, विज्जा - मन्ततिगिच्छगा । अबीया सत्कुसला, मन्त- मूलविसारया ॥२२॥
विद्या तथा मंत्रों से चिकित्सा करने वाले, मंत्र एवं जड़ी-बूटियों (मूल) द्वारा चिकित्सा में निपुण, शस्त्र (शल्य) चिकित्सा में अति कुशल, आयुर्वेद में निष्णात - सभी मेरा उपचार करने लगे ॥२२॥
Then the mantrologists, experts in treatment by roots-herbs, best surgeons and efficient in medical science began to give me treatments. (22)
ते मे तिगिच्छं कुव्वन्ति, चाउप्पायं जहाहियं । न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ॥२३॥
उन्होंने मेरे रोग की उपशान्ति के लिए चुतष्पाद - चिकित्सा ( वैद्य, रोगी, औषध और परिचारक ) की; लेकिन वे मुझे पीड़ा से मुक्त न कर सके, यह मेरी अनाथता थी ॥२३॥
For pacifying disease they give me fourfold treatment (physician, patient, medicine nurses); but they could not make me free from pain. This was my unprotectedness. ( 23 )
पिया मे सव्वसारं पि दिज्जाहि मम कारणा । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥२४॥
मेरे लिए मेरे पिता ने चिकित्सकों को अपनी सारभूत वस्तुएँ (धन, रत्न, मणि, माणिक्य आदि) दीं, फिर भी वे चिकित्सक मुझे वेदना-मुक्त न कर सके, यह मेरी अनाथता थी ॥२४॥
My father gave his valuable possessions to physicians, like-jewels, gems, gold etc., so that they can rescue me from pain; but those could not pacify my pains, hence I say I was without protection. (24)
माया य मे महाराय !, पुत्तसोगदुहट्टिया । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥२५॥
महाराज ! मेरी माता, मेरे प्रति मोह के कारण पीड़ित रहती थी; लेकिन वह भी मुझे मेरे दुःख से मुक्त न कर सकी; यह मेरी अनाथता है ॥२५॥
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O king! My mother always was full of sorrow due to her affection to me; but she also could not make me free from my pains, hence I say I was without a protector. (25)
भायरो मे महाराय !, सगा
- कणिट्ठगा । न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ॥२६॥
महाराज ! मेरे सगे छोटे-बड़े भाई भी मुझे दुःख से छुटकारा न दिला सके; यह मेरी अनाथता है ||२६||
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