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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
आगासे गंग सोउव्व, पडिसोओ व्व दुत्तरो । बाहाहिं सागरो चेव, तरियव्वो गुणोयही ॥ ३७॥
जिस प्रकार आकाश-गंगा का अनुस्रोत और जल प्रवाह का प्रतिस्रोत दुस्तर हैं, सागर को भुजाओं से तैरकर पार करना कठिन है; उसी प्रकार गुणों के समुद्र संयम को भी पार करना अत्यधिक दुष्कर है ||३७॥
It is as difficult like impossible to cross the great ocean of milkyway (heavenly Gangā) against and with its current, by arms. It the same way to cross the great ocean of virtues-restrainment is too much difficult. (37)
एकोनविंश अध्ययन [ २२८
वालुयाकवले चेव, निरस्साए उ संजमे । असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरिउं तवो ॥ ३८ ॥
बालू रेत के कवल-कौर की तरह संयम निःस्वाद - नीरस है तथा तप का आचरण तो तलवार की धार पर चलने जैसा दुष्कर है ||३८||
Restrainment is tasteless like a mouthful of sand and to practise penance is to move on the sharp edge of sword, such difficult it is. ( 38 )
चरित्ते
!
दुच्चरे ।
अहीवेगन्तदिट्ठी, पुत्त जवा लोहमया चेव, चावेयव्वा सुदुक्करं
॥३९॥
सर्प के समान एकाग्र दृष्टि से चारित्रधर्म पर चलना दुष्कर है। लोहे के जौ चबाना जैसे कठिन है उसी तरह चारित्र का पालन करना भी दुष्कर है ॥ ३९॥
Like a snake with fixed eyes on target it is very difficult to practise great conduct-order, chewing or cutting the iron-barleys by wax-teeth is too much difficult, such difficult is to practise conduct-order. (39)
जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होइ सुदुक्करं ।
तहा दुक्करं करे जे, तारुण्णे समणत्तणं ॥४०॥
जैसे प्रज्वलित अग्नि शिखा का पान करना दुष्कर है उसी प्रकार तरुणावस्था में श्रमण धर्म का पालन करना भी दुष्कर है ॥४०॥
As, it is very difficult to swallow the ablazed flame of burning fire, so it is very difficult to practise sagehood in young age. (40)
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जे, होई वायरस को थलो ।
जहा दुक्खं भरे तहा दुक्खं करे
जे, कीवेणं समणत्तणं ॥४१॥
जैसे कपड़े के थैले को हवा से भरना कठिन होता है, वैसे ही कायर पुरुष के द्वारा श्रमणाचार का पालन दुःखप्रद होता है ॥४१॥
As to fill a bag of cloth by wind is a difficult task, so the practising sagehood by coward man is full of miseries. ( 41 )
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