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२२७] एकोनविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Not to eat four types of food, drink, dainties and spices-in night and not to store and keep with him, is very difficult. (31)
छुहा तण्हा य सीउण्हं, दंसमसगवेयणा । अक्कोसा दुक्खसेज्जा य, तणफासा जल्लमेव य ॥३२॥ तालणा तज्जणा चेव, वह-बन्धपरीसहा ।
दुक्खं भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया ॥३३॥ भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, डांस-मच्छर की पीड़ा, आक्रोश वचन, दुःखप्रद शैया, तृणस्पर्श, जल्ल-मैल-॥३२॥
ताड़ना, तर्जना, वध, बन्धन, भिक्षाचर्या, याचना, अलाभ आदि परीषहों को समभाव से सहन करना बहुत ही दुष्कर है ॥३३॥
Hunger and thirst, cold and heat, pains caused by flies and gnats, insulting words, painful lodging, princking of grass, excretions of body-(32)
Blows and threats, corporeal punishment and ties, mendicant's life-order, asking and fruitless begging etc., to bear all these troubles with evenmind is very very difficult. (33)
कावोया जा इमा वित्ती, केसलोओ य दारुणो ।
दुक्खं बम्भवयं घोरं, धारेउं य महप्पणो ॥३४॥ कापोतीवृति-कबूतर की तरह दोषों से सशंक और सतर्क रहना, दारुण केश लोंच तथा घोर ब्रह्मचर्य धारण करना महान आत्माओं के लिए भी अति दुष्कर है ॥३४॥
Like the tendency of pigeon (who is always afraid of dangers) always to be alert and suspicious about faults and much grievious is the tonsure of hairs and to practise rigorous celibacy is very much hard even for the great men. (34)
सुहोइओ तुमं पुत्ता ! सुकुमालो सुमज्जिओ ।
न हु सी पभू तुमं पुत्ता ! सामण्णमणुपालिउं ॥३५॥ पुत्र ! तू अभी सुख भोगने योग्य है, सुकुमार है, सुमज्जित-साफ-सुथरा रहता है। अतः अभी तू श्रमण धर्म का पालन करने के लिए सक्षम नहीं है ॥३५॥
O Son ! Still you are fit for enjoying pleasures, remains always neat and clean. So you are not capable to practise sage-order-sagehood. (35)
जावज्जीवमविस्सामो, गुणाणं तु महाभरो ।
गुरुओ लोहभारो व्व, जो पुत्ता ! होई दुव्वहो ॥३६॥ हे पुत्र ! साधुचर्या के नियमों गुणों का भार तो लोहे के समान भारी है, जिसे जीवन भर बिना विश्राम लिए उठाना है, यह कार्य बहुत ही दुर्वह है, इसे जीवन भर वहन करना अत्यधिक कठिन है ॥३६॥
O son ! The burden of sage-order-virtues is more heavy than iron-weight, which to be lifted whole life without rest even for a moment, it is very hard, to lift-up it for whole life is very much difficult. (36)
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