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त सचित्र उत्तराध्ययन सत्र
एकोनविंश अध्ययन [२२६
संसार के सभी जीवों पर, चाहें वे शत्रु हों अथवा मित्र, समभाव रखना और आजीवन प्राणातिपातहिंसा से विरत होना अत्यन्त दुष्कर है ॥२६॥
Being impartial towards all the beings, may they be friends or foes; and not to injure any throughout life, is extremely difficult. (26)
निच्चकालऽप्पमत्तेणं, मुसावायविवज्जणं ।
__ भासियव्वं हियं सच्चं, निच्चाउत्तेण दुक्करं ॥२७॥ सदैव अप्रमत्त रहकर मृषावाद का त्याग करना तथा सतत उपयोग के साथ हितकारी सत्य बोलना बहुत कठिन है ॥२७॥
Being ever careful to abandon falsehood and to speak beneficial truth is also very difficult. (27)
दन्त-सोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवज्जणं ।
अणवज्जेसणिज्जस्स, गेण्हणा अवि दुक्करं ॥२८॥ ___ दंत शोधन (दतौन) भी बिना दिये न लेना तथा दिया हुआ भी निर्दोष और एषणीय ही लेना, अत्यधिक दुष्कर है ॥२८॥
Not to take anything ungiven even a tooth-pick; and to take any thing yet being given but it should be faultless, it is more difficult. (28)
विरई अबम्भचेरस्स, कामभोगरसन्नुणा ।
उग्गं महव्वयं बम्भं, धारेयव्वं सुदुक्करं ॥२९॥ काम-भोगों के रसों-स्वादों को जानने वाले व्यक्ति के लिए अब्रह्मचर्य से विरति और उग्र महाव्रत ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यधिक कठिन है ॥२९॥
Who has tasted the sexual pleasures, it is very difficult for him to completely abstain from non-celibacy and to practise the severe great vow of celibacy. (29)
धण-धन-पेसवग्गेसु, परिग्गहविवज्जणं ।
सव्वारम्भपरिच्चाओ, निम्ममत्तं सुदुक्करं ॥३०॥ धन-धान्य, प्रेष्य-सेवक वर्ग तथा परिग्रह का एवं सर्व आरम्भ का परित्याग और ममत्व रहित होना बहुत ही कठिन है ॥३०॥
Renouncement of weath, corn and servants, all possessions and becoming totally || affection-free is very difficult. (30)
चउव्विहे वि आहारे, राईभोयणवज्जणा ।
सन्निहीसंचओ चेव, वज्जेयव्वो सुदुक्करो ॥३१॥ अशन-पान आदि चारों प्रकार के आहारों का रात्रि में त्याग करना तथा संनिधि और संचय का त्याग
करना अतीव दुष्कर है ॥३१॥ Jain Education International
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