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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अष्टादश अध्ययन (२१२
जं च मे पुच्छसी काले, सम्मं सुद्धेण चेयसा ।
ताई पाउकरे बुद्धे, तं नाणं जिणसासणे ॥३२॥ तुमने जो मुझसे सम्यक् शुद्धचित्त से काल (आयु) के विषय में प्रश्न किया है, वह सर्वज्ञ ने प्रकट किया है तथा वह जिनशासन में है ॥३२॥
With pure heart you questioned me about time (age), that is answered by omniscient and it is in Jain order. (32)
किरियं च रोयए धीरे, अकिरियं परिवज्जए ।
दिट्ठीए दिट्ठिसंपन्ने, धम्मं चर सुदुच्चरं ॥३३॥ धीर पुरुष क्रिया में रुचि रखता है और अक्रिया का परित्याग करता है। सम्यग्दर्शन से दृष्टि सम्पन्न होकर अति दुश्चर श्रुत-चारित्र धर्म का आचरण करो ॥३३॥
Steady and wise person takes interest or believes in the existence of soul (41) and avoids the non-existence of soul (317924). Being opulent with right faith practise the religious order of knowledge and conduct, which is very difficult to practise. (33)
एयं पुण्णपयं सोच्चा, अत्थ-धम्मोवसोहियं ।
भरहो वि भारहं वासं, चेच्चा कामाइ पव्वए ॥३४॥ अर्थ (मोक्ष प्राप्ति का लक्ष्यभूत उद्देश्य) और धर्म से उपशोभायमान इस पुण्यपद-पवित्र उपदेश वचन को सुनकर भरत चक्रवर्ती सम्पूर्ण भरत क्षेत्र के राज्य और काम-भोगों को त्यागकर प्रव्रजित हुए थे ॥३४॥
Hearing this meritorious exhortation, aiming to obtain emancipation and adomed with true religion, universal monarch Bharata became consecrated in Jain monk-order abandoning all the worldly pleasures and amusements and vast kingdom of Bharata-ksetra-the whole Bhārata-varsa. (34)
सगरो वि सागरन्तं, भारहवासं नराहिवो ।
इस्सरियं केवलं हिच्चा, दयाए परिनिव्वुडे ॥३५॥ नराधिप सगर चक्रवर्ती सागर पर्यन्त भारतवर्ष के राज्य तथा सम्पूर्ण ऐश्वर्य को त्यागकर दया-संयम की साधना द्वारा परिनिर्वृत्त-मुक्त हुए ॥३५॥
Monarch Sagara, the ruler of men, giving up the ocean-girt kingdom of Bhārata-varsa and his unrivalled fortunes; and by the practice of compassion and restrain obtained liberation. (35)
चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्ढिओ ।
पव्वज्जमब्भुवगओ, मघवं नाम महाजसो ॥३६॥ महाऋद्धि सम्पन्न, महायशस्वी मघवा चक्रवर्ती ने भी भारतवर्ष के राज्य को त्यागकर प्रव्रज्या स्वीकार की थी ॥३६॥
Opulent with great fortunes and glories monarch Maghavă also accepted consecration and gave up all these. (36)
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