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त सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अष्टादश अध्ययन [२१०
संजओ नाम नामेणं, तहा गोत्तेण गोयमो ।
गद्दभाली ममायरिया, विज्जाचरणपारगा ॥२२॥ (संजय राजर्षि) मेरा नाम संजय तथा गोत्र गौतम है। ज्ञान और चारित्र के पारगामी अनगार गर्दभालि मेरे आचार्य हैं ||२२॥
(royal sage Sanjaya) My name is Sanjaya and lineage Gautama. My preceptor iş monk Gardabhāli, who is conversant with scriptural knowledge and conduct (right knowledge and right conduct.) (22)
किरियं अकिरियं विणयं, अन्नाणं च महामुणी !
एएहिं चउहिं ठाणेहिं, मेयन्ने किं पभासई ॥२३॥ (क्षत्रिय राजर्षि) हे महामुने ! क्रिया, अक्रिया, विनय और अज्ञान-इन चार स्थानों (वादों) के द्वारा कुछ एकान्तवादी तत्त्वज्ञ कुत्सित तत्व की प्ररूपणा करते हैं ॥२३॥
(ksatriya royal sage) 0 great monk ! kriya, akriya, vinaya and ajnana-by these four disputations some heretics expound the ill-elements. (23)
इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिनिव्वुडे ।
विज्जा-चरणसंपन्ने, सच्चे सच्चपरक्कमे ॥२४॥ बुद्ध-तत्त्वज्ञानी, परिनिर्वृत्त-परिशांत, ज्ञान-चारित्र से संपन्न, सत्यवादी, सत्य पराक्रमी ज्ञातवंशीय भगवान महावीर ने इस प्रकार प्रगट किया है ||२४||
Bhagawāna Mahāvira of jñāta lineage, who was enlightened, wise, metaphysician, calm, liberated, opulent with right knowledge and conduct, truthful and of right energy, has expressed-(24)
पडन्ति नरए घोरे, जे नरा पावकारिणो ।
दिव्वं च गई गच्छन्ति, चरित्ता धम्ममारियं ॥२५॥ जो मानव पापकर्म करते हैं वे घोर नरक में गिरते हैं और जो श्रेष्ठ धर्म का आचरण करते हैं वे देवगति में जाते हैं ॥२५॥
Men who commit sins go to hell and practisers of best religious order attain godexistence. (25)
मायावुइयमेयं तु, मुसाभासा निरत्थिया ।
संजममाणो वि अहं, वसामि इरियामि च ॥२६॥ एकान्तवादियों का कथन कपट से भरा है, मिथ्या है, निरर्थक है। मैं इन असत्य प्ररूपणाओं से निवृत्त और बचकर रहता हूँ ॥२६॥
The expression of particularists (एकान्तवादी) is full of deceit, false and vain; I remain far away from these false expressions. (26)
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