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२०७] अष्टादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
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अह आसगओ राया, खिप्पमागम्म सो तहिं ।
हए मिए उ पासित्ता, अणगारं तत्थ पासई ॥६॥ जहाँ अनगार ध्यानस्थ थे, अश्वारूढ़ राजा संजय शीघ्र ही वहाँ आया। पहले उसने मृत हरिणों को देखा और फिर उसकी दृष्टि अनगार की ओर उठ गई ॥६॥
Now king Sanjaya on horseback came hastily there. First he saw the dead deers and then mendicant came in his sight. (6)
अह राया तत्थ संभन्तो, अणगारो मणाऽऽहओ ।
मए उ मन्दपुण्णेणं, रसगिद्धेण घन्तुणा ॥७॥ वहाँ अनगार को देखकर राजा सहसा भयाक्रांत हो गया। वह सोचने लगा-मैं कैसा मन्द-पुण्य, भाग्यहीन, रसलोलुप और हिंसक हूँ कि मैंने मृगों का वध करके व्यर्थ ही अनगार को पीड़ित किया ॥७॥
The king at once frightened. He began to think-How ill-fated, athirst to tastes and killer I am that murdering the deers I have uselessly injured (the feelings of) the mendicant. (7)
आसं विसज्जइत्ताणं, अणगारस्स सो निवो ।
विणएण वन्दए पाए, भगवं ! एत्थ मे खमे ॥८॥ अश्व को छोड़कर राजा ने विनयपूर्वक अनगार के चरणों में वन्दन किया और कहा-भगवन् ! इस अपराध के लिए मुझे क्षमा प्रदान करें ॥८॥
Dismissing the horse, king bowed respectfully at the feet of mendicant and said-reverend sir ! please pardon me for my offence. (8)
अह मोणेण सो भगवं, अणगारे झाणमस्सिए ।
रायाणं न पडिमन्तेइ, तओ राया भयदुओ ॥९॥ किन्तु उस समय वे अनगार भगवन्त मौन के साथ ध्यान में लीन थे। अतः उन्होंने राजा को कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया। राजा इससे और अधिक भयाक्रांत हुआ ॥९॥
But the reverend mendicant was plunged in deep silent meditation, so he did not respond. By it king became more frightened. (9)
संजओ अहमस्सीति, भगवं ! वाहराहि मे।
कुद्धे तेएण अणगारे, डहेज्ज नरकोडिओ ॥१०॥ भयाक्रान्त राजा नम्रतापूर्वक बोला-भगवन् ! मैं संजय राजा हूँ। आप मुझ से कुछ तो बोलें। क्योंकि कुपित हुए अनगार अपने तपःतेज से करोड़ों मनुष्यों को जलाकर भस्म कर सकते हैं ॥१०॥
Frightened king uttered modestly-Reverend sir ! I am king Sanjaya. You please speak even a-little to me. Because a mighty mendicant in his wrath, can reduce the millions of men to ashes. (10)
अभओ पत्थिवा ! तुब्भं, अभयदाया भवाहि य । अणिच्चे जीवलोगम्मि, किं हिंसाए पसज्जसि ? ॥११॥
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