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ती सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अष्टादश अध्ययन [२०८
(ध्यान पूरा करके) अनगार ने कहा-हे पृथ्वीपति ! तुमको अभय है ; लेकिन तुम भी अभयदाता बनो। इस अनित्य जीवलोक (जीवन) में तुम क्यों हिंसा में आसक्त हो रहे हो? ॥११॥
Completing his meditation the great mendicant spoke thus-Be fearless from me, but you also make all the living beings fear-free. In this transient world of living beings why are you addicted to violence ? (11)
जया सव्वं परिच्चज्ज, गन्तव्वमवसस्स ते ।
अणिच्चे जीवलोगम्मि, किं रज्जम्मि पसज्जसि ? ॥१२॥ जब सब कुछ यहीं छोड़कर तुम्हें विवश होकर चले जाना है तब इस अनित्य जीवलोक में तुम क्यों राज्य में आसक्त बने हुए हो ? ॥१२॥ When you are bound to go, parting all these. Why do you cling to kingdom ? (12)
जीवियं चेव रूवं च, विज्जुसंपाय-चंचलं ।
जत्थ तं मुज्झसी राय !, पेच्चत्थं नावबुज्झसे ॥१३॥ हे राजन् ! जिनमें तुम मोहमुग्ध बने हुए हो वह जीवन और सौन्दर्य विद्युत की चमक के समान चंचल है। तुम अपने परलोक के हित को नहीं समझ रहे हो ॥१३॥
This life and beauty you love, are like a flash of lightning. Being overwhelmed by these, Oking ! You do not comprehend the benefits of the next world. (13)
दाराणि य सुया चेव, मित्ता य तह बन्धवा ।
जीवन्तमणुजीवन्ति, मयं नाणुव्वयन्ति य ॥१४॥ स्त्रियाँ, पुत्र, मित्र तथा बन्धुजन-सभी जीवित व्यक्ति के साथ ही रहते हैं, मरने पर उसके साथ कोई भी नहीं जाता ॥१४॥
Wives (women), sons, friends and kins depend only on a living man, at the time of death none of these follow him. (14)
नीहरन्ति मयं पुत्ता, पियरं परमदुक्खिया ।
पियरो वि तहा पुत्ते, बन्धू रायं ! तवं चरे ॥१५॥ अत्यन्त दुःखी होकर पुत्र अपने मृत पिता को बाहर-श्मशान में निकाल देते हैं। इसी प्रकार पिता भी अपने पुत्र को और भाई अपने भाई को निकाल देते हैं। इसलिए हे राजन् ! तुम तपश्चरण करो ॥१५॥
Sons, full of sorrow, remove the corpse of their father to cemetry. In the same way father removes his son, and brother removes his brother. Therefore, Oking ! You do penance. (15)
तओ तेणऽज्जिए दव्वे, दारे य परिरक्खिए ।
कीलन्तऽन्ने नरा रायं !, तुट्ठ-हट्ट-मलंकिया ॥१६॥ हे राजन् ! मृत्यु के उपरान्त उस व्यक्ति के उपार्जित धन एवं सुरक्षित स्त्रियों का अन्य व्यक्ति हृष्ट, तुष्ट और अलंकृत होकर उपभोग करते हैं ॥१६॥
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