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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
षोडश अध्ययन [१९२
मणपल्हायजणणिं, कामरागविवड्डणिं ।
बंभचेररओ भिक्खू, थीकहं तु विवज्जए ॥२॥ ब्रह्मचर्यपरायण साधु चित्त में आल्हाद उत्पन्न करने वाली तथा काम-राग बढ़ाने वाली विकार वर्द्धक स्त्री-कथा का परित्याग कर दे ॥२॥
Celibate ascetic should abandon the women tale, which delights the mind and foments love and passion. (2)
समं च संथवं थीहिं, संकहं च अभिक्खणं ।
बंभचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए ॥३॥ ब्रह्मचर्य में लीन रहने वाला भिक्षु स्त्रियों की प्रशंसा, उनके साथ अति परिचय तथा बार-बार वार्तालाप करना छोड़ दे ॥३॥
Celibate mendicant relinquish the appraisal of women, more acquaintance and again and again frequent conversation with them. (3)
अंगपच्चंग-संठाणं, चारुल्लविय-पेहियं ।
बंभचेररओ थीणं, चक्खुगिज्झं विवज्जए ॥४॥ ब्रह्मचर्य में रत भिक्षु दृष्टिगोचर हुए स्त्रियों के अंग-प्रत्यंग, शरीर की रचना, वार्तालाप का ढंग तथा चितवन आदि को देखकर भी न देखे, अपनी दृष्टि तुरन्त वहाँ से हटा ले ॥४॥
A celibate mendicant, occuring before the sight, the part and portion, limbs, frame (figure) of body of women and their mode of conversation pleasant prattle and oglingsseeing all these he should treat as unseen, at once move his eyes from her. (4)
कुइयं रुइयं गीयं, हसियं थणिय-कन्दियं।
बंभचेररओ थीणं, सोयगिज्झं विवज्जए ॥५॥ ब्रह्मचारी मुनि स्त्रियों के कूजन, रुदन, गीत, हास्य, गर्जन, क्रन्दन आदि शब्द न सुने, यदि भिक्षु के कानों में वे शब्द पड़ भी जायँ तो उन पर ध्यान न दे ॥५॥ ___ A celibate monk should avoid hearing the screeching, screaming, singing, laughing, giggling and crying of women. If these words, any how listened, then he should pay no attention to them. (5)
हासं किड्डं रई दप्पं, सहसाऽवत्तासियाणि य ।
बम्भचेररओ थीणं, नाणुचिन्ते कयाइ वि ॥६॥ स्त्री के साथ गृहस्थ जीवन में किये हुए हास्य, क्रीड़ा, रति, दर्प-अभिमान, आकस्मिक त्रास आदि का ब्रह्मचर्यनिरत भिक्षु मन में भी चिन्तन न करे ॥६॥
A celibate monk should never recall to his mind-how he had laughed and played with women and had enjoyed them, how they became jealous and what tricks he played to frighten them, during his house holder-life. (6)
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