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१९१] षोडश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सूत्र १२-नो सद्द-रूव-रस-गन्ध-फासाणुवाई हवइ, से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ?
आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु सद्द-रूव-रस-गन्ध-फासाणुवाइस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गन्थे सद्द-रूव-रस-गन्ध-फासाणुवाई हविज्जा ।
दसमे बम्भचेरसमाहिठाणे हवइ । दसवाँ ब्रह्मचर्य समाधि स्थान
सूत्र १२-जो शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श में आसक्ति नहीं रखता; वह निर्ग्रन्थ है। (प्रश्न) ऐसा क्यों है ?
(उत्तर) आचार्य कहते हैं-शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श में आसक्त ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा समुत्पन्न होती है, ब्रह्मचर्य भंग होता है, उन्माद उत्पन्न हो जाता है, दीर्घकालीन रोग व आतंक पैदा हो जाते हैं, वह केवली भगवान द्वारा प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है।
इसलिए निर्ग्रन्थ को शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श में आसक्त नहीं होना चाहिए। यह दशवाँ ब्रह्मचर्य समाधि स्थान है।
Maxim 12-(Tenth celibacy condition)-Who does not incline towards words (voices-sounds) sight (beauties-colours), smells, tastes and touches, he is a knot-free monk.
(Q.) Why it is so ?
(Ans.) Preceptor says-If a knotless monk indulged in sounds, colours-sights, smells, tastes and touches; he doubts about the benefits of celibacy, desires sexual intercourse, due to intensity of sensual desires his mind cracks, celibacy is broken up, either he is gripped by mental disorder or dreadful prolonged diseases, he abandons the religious order prescribed by kevalins.
So knot-free monk should not indulge himself in sounds, sights, smells, tastes and touches.
This is the tenth celibacy condition भवन्ति इत्थ सिलोगा, तं जहायहाँ इस विषय में कुछ गाथाएँ (श्लोक) हैं, जो इस प्रकार हैंHere are some verses (couplets-stanzas) to the same effect, These are as follows
जं विवित्तमणाइण्णं, रहियं थीजणेण य ।
बम्भचेरस्स रक्खट्ठा, आलयं तु निसेवए ॥१॥ ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए संयमी विविक्त-एकान्त, अनाकीर्ण एवं स्त्रियों से रहित स्थान में रहे ॥१॥
For preservation of celibacy, the restrained takes up a detached, lonely lodging, free
from and not frequented by women. (1) Jain Education International
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