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१९३] षोडश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
मयविवड्ढणं ।
पणीयं भत्तपाणं तु, खिप्पं बम्भचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए ॥७॥
ब्रह्मचर्य में रत भिक्षु कामवासना को शीघ्र ही बढ़ाने वाले प्रणीत रसयुक्त पौष्टिक भोजन का त्याग कर
दे ॥७॥
A celibate should renounce the delicious, nourishing, ghee-oozing diets and water, which enhances sensual desires quickly. (7)
धम्मलद्धं मियं काले, जत्तत्थं पणिहाणवं ।
नाइमत्तं तु भुंजेज्जा, बम्भचेररओ सया ॥८ ॥
ब्रह्मचर्यपरायण भिक्षु स्थिर एवं स्वस्थ चित्त होकर संयम यात्रा के लिए उचित समय में धर्ममर्यादा के अनुसार प्राप्त परिमित भोजन करे; मात्रा से अधिक आहार न करे ॥८॥
A celibate monk should eat his food with calm mind and stability, at the prescribed time and limit for only sustaining his body, for the sake of observing religious-rituals; he should not eat in excessive quantity. (8)
विभूसं परिवज्जेज्जा, सरीर परिमण्डणं । बम्भचेररओ भिक्खू, सिंगारत्थं न धारए ॥९॥
ब्रह्मचर्यनिरत भिक्षु विभूषा का परित्याग कर, शृंगार के लिए शरीर को सजाए -संवारे नहीं ॥९॥
A celibate mendicant should renounce adornig his body and not decorate the body for the sake of embellishment. ( 9 )
सद्दे रूवे य गन्धे य, रसे फासे तहेव य ।
पंचविहे कामगुणे, निच्चसो परिवज्जए ॥१०॥
शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श- इन पाँच प्रकार के कामगुणों को ब्रह्मचर्यपरायण भिक्षु सदा के लिए त्याग दे ॥ १० ॥
A celibate monk should abandon for ever the five orders of pleasure - ( 1 ) sounds, ( 2 ) sights (3) smells, (4) tastes and (5) feelings of touches. (10)
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आलओ थीजणाइण्णो, थीकहा य मणोरमा । संथवो चेव नारीणं, तासिं इन्दियदरिसणं ॥११॥ कुइयं रुइयं गीयं, हसियं भुत्तासियाणि य । पणीयं भत्तपाणं च अइमायं पाणभोयणं ॥१२॥ गत्तभूसणमिट्ठे च कामभोगा या दुज्जया । नरस्सऽत्तगवेसिस्स, विसं तालउडं जहा ॥१३॥ (१) स्त्रियों से आकीर्ण संसक्त स्थान | (२) मनोरम स्त्री कथा |
(३) स्त्रियों के साथ अति परिचय |
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