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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
षोडश अध्ययन [१८६
तृतीय ब्रह्मचर्य समाधि स्थान
सूत्र ५-जो स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठता; वह निर्ग्रन्थ है। (प्रश्न) ऐसा क्यों है?
(उत्तर) आचार्य कहते हैं-स्त्रियों के साथ एक आसन पर बैठने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा उत्पन्न होती है, ब्रह्मचर्य का नाश होता है, उन्माद और दीर्घकालीन रोग व आतंक उत्पन्न होते हैं, वह केवली प्रज्ञप्त धर्म से विचलित हो जाता है।
अतः निर्ग्रन्थ स्त्रियों के साथ एक आसन पर हरगिज न बैठे।
Maxim 5-(Third celibacy condition)-Who does not sit on one seat with women, he is a knotless monk.
(Q.) Why it is so?
(Ans.) Preceptor expresses-The celibate knotless monk who sits on a seat with women; then the doubt about the benefits of celibacy may arouse, desire of sexual intercourse may take place, his mind may be frustrated by the intensity of desire, the vow of celibacy may be broken, or mental disorder may occur, mental frustration or prolonged sickness may catch him, he abandons the religious order precepted by kevalins.
So knotless monk should not sit on one seat with women on any account.
सूत्र ६-नो इत्थीणं इन्दियाइं मणोहराई, मणोरमाई आलोइत्ता, निज्झाइत्ता हवइ, से निग्गन्थे ।
तं कहमिति चे?
आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं इन्दियाइं मणोहराई, मणोरमाइं आलोएमाणस्स, निज्झायमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंके हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । ... तम्हा खलु निग्गन्थे नो इत्थीणं इन्दियाइं मणोहराई, मणोरमाइं आलोएज्जा, निज्झाएज्जा । चतुर्थ ब्रह्मचर्य समाधि स्थान
सूत्र ६-जो स्त्रियों की मनोहर और मनोरम-मन को हरण करने वाली तथा मन में विकार उत्पन्न करने वाली इन्द्रियों को (टकटकी लगाकर) नहीं देखता और न ही उनके विषय में चिन्तन करता है; वह निर्ग्रन्थ
__(प्रश्न) ऐसा क्यों है ?
(उत्तर) आचार्य कहते हैं-स्त्रियों की मनोहर और मनोरम इन्द्रियों को देखने और उनके विषय में चिन्तन करने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा और विचिकित्सा उत्पन्न होती है, ब्रह्मचर्य का विनाश हो जाता है, उन्माद तथा दीर्घकालिक रोग व आतंक उत्पन्न हो जाते हैं, वह केवली भगवान द्वारा प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है।
इसलिए निर्ग्रन्थ स्त्रियों की मनोहर और मनोरम इन्द्रियों-अंगों को न तो देखे और न उनका चिन्तन ही
करे।
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