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१८५] षोडश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
intensity of desire, or the vow of celibacy may be broken, or mental disorder and prolonged diseases may catch him, he deserts the faith in the religious order precepted by kevalins-possessor of limitless knowledge.
Therefore who does not use the bed or seat used or inflicted by woman, eunuch and beast is a knotless monk.
सूत्र ४-नो इत्थीणं कहं कहित्ता हवइ, से निग्गन्थे । तं कहमिति चे?
आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स, बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंके हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा नो इत्थीणं कहं कहेज्जा । द्वितीय ब्रह्मचर्य समाधि स्थान
सूत्र ४-जो स्त्रियों के रूप, लावण्य, हाव-भाव आदि से संबंधित कामोत्तेजक कथा नहीं कहता, वह निर्ग्रन्थ है।
(प्रश्न) ऐसा क्यों है ?
(उत्तर) आचार्य उत्तर देते हुए कहते हैं-स्त्रियों की कथा कहने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा उत्पन्न होती है, उसके ब्रह्मचर्य का विनाश हो जाता है, उन्माद अथवा दीर्घकालीन रोग और आतंक हो जाते हैं। वह केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है।
इसलिए ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को स्त्री-कथा नहीं कहनी चाहिए।
Maxim 4-(Second celibacy condition)-Who does not tell the sex exciting stories regarding beauty, grace, coquetry of women, he is a knotless monk.
(Q.) Why it is so ?
(Ans.) Preceptor explains-who tells sex-exciting stories about women; then doubts about the benefits of celibacy may arouse, desire of sexual intercourse may take place, his mind may be frustrated due to intense desire, or the vow of celibacy may be broken, or mental disruption may catch him or prolonged diseases, he deserts the religious-order precepted by kevalins.
Therefore celibate should not tell the women tale. सूत्र ५-नो इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरित्ता हवइ, से निग्गन्थे । तं कहमिति चे?
आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागयस्स, बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा ।
तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरेज्जा ।
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