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१६७] चतुर्दश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंखाविहूणो व्व जहेह पक्खी, भिच्चा विहूणो व्व रणे नरिन्दो ।
विवन्नसारो वणिओ व्व पोए, पहीणपुत्तो मि तहा अहं पि ॥३०॥ इस संसार में जैसे पंखों के बिना पक्षी, सैनिकों के बिना राजा और नौका पर नहीन वणिक असहाय होता है। पुत्रों के बिना ऐसी ही दशा मेरी भी है ॥३०॥
As a bird without wings, a king without his warriors, a merchant on boat without goods becomes helpless; the same I am without sons. (30)
सुसंभिया कामगुणा इमे ते, संपिण्डिया अग्गरसप्पभूया ।
भुंजामु ता कामगुणे पगाम, पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं ॥३१॥ (पुरोहित पत्नी) हे स्वामी ! सुसंस्कृत तथा सुगृहीत कामभोगरूप प्रचुर विषय-रस जो हमें प्राप्त हैं। उनको इच्छानुरूप भोग लें। बाद में प्रव्रज्यारूप प्रधान मोक्ष मार्ग पर चलेंगे ॥३१॥
(Wife of Purohita) We have cultured and accumulated objects of pleasures, we must enjoy them fully and then we will take the path of salvation. (31)
भुत्ता रसा भोइ ! जहाइ णे वओ, न जीवियट्ठा पजहामि भोए ।
लाभं अलाभं च सुहं च दुक्खं, संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ॥३२॥ (पुरोहित) हे भगवती ! हम विषय-रसों को बहुत भोग चुके। युवावस्था भी अब हमें छोड़ रही है। मैं स्वर्गीय जीवन-प्राप्ति के लिए इन भोगों का त्याग नहीं कर रहा हूँ अपितु लाभ-अलाभ, सुख-दुःख में समभाव से मुनि धर्म-मोण का पालन करूँगा ॥३२॥
(Purohita) We have enjoyed sensual pleasures much more. Our young age is passing. I am not renouncing these amusements for the sake of divine pleasures ; but I shall practise the sage-order keeping mind full of peace in gain and no-gain, pleasure and pain. (32)
मा हू तुमं सोयरियाण संभरे, जुण्णो व हंसो पडिसोत्तगामी ।
भुंजाहि भोगाइ मए समाणं, दुक्खं खु भिक्खायरियाविहारो ॥३३॥ (पुरोहित-पत्नी) स्वामी ! धारा के विपरीत तैरने वाले प्रतिनोतगामी वृद्ध हंस के समान आपको भी कहीं अपने बन्धुओं को याद न करना पड़े। अतः मेरे साथ भोग भोगो। भिक्षाचर्या और विहार निश्चित रूप से बहुत ही कष्टकारी हैं ॥३३॥
(Wife of Purohita) May you not remember your brothers like the old goose swimming against the current. So enjoy pleasures with me. The mendicant-order, sally forth and wandering bare feet is really very painful. (33)
जहा य भोई ! तणुयं भुयंगो, निम्मोयणिं हिच्च पलेइ मुत्तो ।
एमेए जाया पयहन्ति भोए, ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्को ? ॥३४॥ (पुरोहित) जिस तरह भुजंग अपने शरीर की केंचुली छोड़कर मुक्त मन से चलता है उसी प्रकार ये दोनों पुत्र भोगों का त्याग कर रहे हैं। अब मैं अकेला रहकर क्या करूँगा? क्यों न इनका ही अनुगमन करूँ ? ॥३४॥
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