________________
An, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चतुर्दश अध्ययन [१६६
जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई ।
धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जन्ति राइओ ॥२५॥ जो रात्रियाँ व्यतीत हो रही हैं वे कभी लौटकर वापस नहीं आतीं। धर्म करने वालों की रात्रियाँ सफल होती हैं ॥२५॥
Passing nights (moment of time) never come again. Persons practise religious order their nights (time) become fruitful-successful. (25)
एगओ संवसित्ताणं, दुहओ सम्मत्तसंजुया ।
पच्छा जाया ! गमिस्सामो, भिक्खमाणा कुले कुले ॥२६॥ (पिता) पुत्रो ! पहले तुम और हम सब सुख से गृहवास में रहकर सम्यक्त्व और व्रतों का पालन करें तत्पश्चात् वृद्धावस्था में भिक्षाजीवी श्रमण बन जायेंगे ॥२६॥
(Father) Sons ! First we all acquire right faith and practise partial vows living in the home after that in old age we would be mendicants. (26)
जस्सत्थि मच्चुणा सक्खं, जस्स वऽत्थि पलायणं ।
जो जाणे न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया ॥२७॥ (पुत्र-) पिताजी ! जिसकी मृत्यु के साथ मित्रता हो अथवा जो मृत्यु आने पर पलायन कर सकता हो, या जिसको विश्वास हो कि 'मैं कभी मरूँगा ही नहीं'; वही कल की प्रतीक्षा कर सकता है ॥२७॥
(Sons) Father ! Who has friendship with death or who can escape, or who has strong belief that I shall never die'; only he can wait for tomorrow. (27)
अज्जेव धम्म पडिवज्जयामो, जहिं पवना न पुणब्भवामी ।
अणागयं नेव य अत्थि किंचि, सद्धाखमं णे विणइत्तु रागं ॥२८॥ पिताजी ! हम आज ही राग को त्यागकर श्रद्धा सहित उस मुनिधर्म को ग्रहण करेंगे, जिसे ग्रहण करने के पश्चात पनः संसार में नहीं आना पडता। रही भोगों की बात, वे अनन्त बार भोगे जा चके हैं. अतः कोई भी भोग अभुक्त नहीं है ॥२८॥
Father ! We shall adopt the monkhood now, adopting and practising we will not born again in this world. And about pleasures, they are experienced infinite times, so no pleasure is non-experienced. We shall destroy the attachment by our firm faith. (28)
पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो, वासिट्ठि ! भिक्खायरियाइ कालो ।
साहाहि रुक्खो लहए समाहिं, छिन्नाहि साहाहि तमेव खाणुं ॥२९॥ (पुरोहित) हे वाशिष्ठि (पुरोहित की पत्नी) ! पुत्रों के बिना अब मैं इस घर में नहीं रह सकता। मेरा भिक्षाचर्या का समय आ गया है। वृक्ष शाखाओं से शोभित होता है और शाखाएँ कट जाने पर दूंठ हो जाता है ॥२९॥
(Purohita) O Vāśithi ! (the wife of Purohita) I cannot live in this home without sons. The time has arrived also for me to turn mendicant friar. Tree is adorned by its branches and if branches are cut off it remains only a stump (of a tree). (29)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org