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१६५ ] चतुर्दश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(Sons) Devoid of sight, smell etc., the formless soul cannot be known by senses. But the formless existences are eternal. Bondage is created by the internal defects-attachment etc., of soul and bondage alone is called as the cause of world-cycle of births and deaths. (19)
जहा वयं धम्ममजाणमाणा, पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । ओरुज्झमाणा परिरक्खियन्ता, तं नेव भुज्जो वि समायरामो ॥२०॥
हम जब तक धर्म को नहीं जानते थे, पाप करते रहे। आपने हमें रोका और हमारा पालन-पोषण किया। लेकिन अब हम पाप कर्म नहीं करेंगे ॥२०॥
Until we were not aware about religion, we did sins, you have dissuade and grown up us. But now we wouli not do any sinful deed. (20)
अब्भाहयंमि लोगंमि, सव्वओ परिवारिए । अमोहाहिं पडन्तीहिं, गिहंसि न रई लभे ॥२१॥
लोक पीड़ित है। चारों ओर से घिरा है। अमोघा आ रही है। इस दशा में हम घर में सुख का अनुभव नहीं कर पाते हैं ॥ २१ ॥
All the living beings-loka is oppressed, surrounded by all sides, continuous moving the wheel of time (अमोघा ) is coming. In such position, we are feeling no delight living in house. (21)
के अब्भाहओ लोगो ?, केण वा परिवारिओ ? । का वा अमोहा वृत्ता ?, जाया ! चिंतावरो हुमि ॥ २२ ॥
(पिता) पुत्रो ! यह लोक किस से आहत अथवा पीड़ित है ? किस से घिरा हुआ है ? अमोघा किसे कहते हैं ? मैं यह जानने के लिए चिन्तित हूँ ॥२२॥
(Father) Sons ! By what these living beings-loka is injured ? Surrouned by what ? What do you mean by amogha ? I am anxious to know all these. (22)
मच्चुणाऽब्भाहओ लोगो, जराए परिवारिओ | अमोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय ! वियाणह ॥ २३ ॥
(पुत्र) पिताजी ! आप भली भाँति जान लें कि यह संसार मृत्यु से आहत है, वृद्धावस्था से घिरा हुआ है। और समयचक्र की कभी न रुकने वाली गति (दिन-रात की गति) को अमोघा कहा जाता है ॥२३॥
(Sons) Respected father! very well you should know that all the living beings-loka is oppressed by death, surrounded by old age and the ever continuous wheel of time (the day and night) is called as amoghā. (23)
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जाजा वच्चइ रयणी, न सा
पडिनियत्तई । अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जन्ति राइओ ॥२४॥
जो रात्रियां व्यतीत हो रही हैं, वे कभी वापस लौटकर नहीं आतीं। अधर्म करने वालों की रात्रियां निष्फल जाती हैं ॥ २४ ॥
Passing nights (time) never return. The nights (time) of irreligious persons become fruitless-unsuccessful. (24)
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