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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(Purohita) As a serpent casts off the slough of his body and moves free and easy, even so my sons renounced the pleasures. Why should I, being left alone, not follow them. (34)
चतुर्दश अध्ययन [ १६८
छिन्दित्तु जालं अबलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाय । धोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खायरियं चरिन्ति ॥३५॥
जिस प्रकार कमजोर जाल को काटकर रोहित मत्स्य निकल जाते हैं। उसी प्रकार धारण किये हुए संयम के गुरुतर भार को वहन करने वाले प्रधान तपस्वी, धीर साधक कामगुणों को त्यागकर भिक्षाचर्या रूप श्रमणधर्म पर चल पड़ते हैं ॥३५॥
As the Rohita fishes break through the weak snare (net). In the same way, the great penancers and steady adepts, bearing the huge burden of accepted restrain abandoning the worldiy pleasures move on the path of mendicants. ( 35 )
हंसा ।
जव कुंचा समइक्कमन्ता, तयाणि जालाणि दलित्तु पन्ति पुत्ताय पई यमज्झं, तेहं कहं नाणुगमिस्समेक्का ? ॥ ३६ ॥
( पुरोहित पत्नी) जैसे क्रौंच पक्षी और हंस बहेलिये द्वारा बिछाये गये जाल को काटकर आकाश में स्वतंत्र उड़ जाते हैं। उसी प्रकार मेरे पुत्र और पति भी जा रहे हैं। तब मैं अकेली रहकर क्या करूँगी ? क्यों न मैं भी इनका ही अनुगमन करूँ ? ॥३६॥
(Wife of Purohita) As the herons and geese fly up freely in the sky, rending the snare stretched by the fowler. In the same way my husband and sons are going renouncing the home. Then what would I do remaining alone. Why should I not follow them ? (36)
पुरोहियं तं ससुयं सदारं, सोच्चाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए । कुटुंबसारं विलुत्तमं तं रायं अभिक्खं समुवाय देवी ॥३७॥
पुत्रों और पत्नी के साथ पुरोहित ने भोगों को त्याग कर गृहत्याग किया है, यह सुनकर उस परिवार की विपुल और उत्तम धन-सम्पत्ति की इच्छा रखने वाले राजा इषुकार से उसकी रानी कमलावती ने कहा- ॥३७॥
Hearing that, with sons and wife Bhrgu Purohita has renounced his house, Queen Kamalāvati said to her husband King Işukara, who was desirous to confiscate the enormous wealth of that family. (37)
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वन्तासी पुरिसो रायं ! न सो होइ पसंसिओ ।
माहणेण परिच्चत्तं, धणं आदाउमिच्छसि ॥ ३८ ॥
( रानी कमलावती) हे राजन् ! ब्राह्मण भृगु पुरोहित द्वारा परित्यक्त धन को आप लेना चाहते हो किन्तु वमन किये हुए पदार्थ को खाने वाला पुरुष प्रशंसनीय नहीं होता ॥ ३८ ॥
(Queen Kamalāvati) O King! you want to confiscate the large property left by Brāhmaṇa (Bhrgu Purohita); but the man who eats up the vomitted things, is never praised. (38)
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