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१३९] द्वादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
- विशेष स्पष्टीकरण गाथा १-श्वपाक का अर्थ चाण्डाल लिया जाता है। यह एक अत्यन्त निम्न श्रेणी की नीच जाति थी। चूर्णि के अनुसार इस जाति में कुत्ते का मांस पकाया जाता था। "श्वेन पचतीति श्वपाकः"।
गाथा १८-उपज्योतिष्क का अर्थ है-अग्नि के समीप रहने वाला रसोइया।
गाथा २४-"येयावडियं" की व्युत्पत्ति चूर्णिकार ने बड़ी ही महत्वपूर्ण की है जिससे कर्मों का विदारण होता है, उसे "यावडिय" कहते हैं-"विदारयति वेदारयति वा कर्म वेदावडिता।"
गाथा २७-"आशीविष" एक योगजन्य लब्धि है। आशीविष लब्धि के द्वारा साधक किसी का भी मनचाहा अनुग्रह और निग्रह करने में समर्थ हो जाता है। वैसे आशीविष सर्प को भी कहते हैं। मुनि को छेड़ना, आशीविष सर्प को छेड़ना है।
Salient Elucidations Gatha 1-Śwapāka is interpretated as candāla. It was a caste of lowest category. According to Curni in this caste the flesh of dog was cooked. “Swena pacatiti swa-pākah."
Gathā 18-Upajyotiska means a person who sits by the sacrificial fire-a cook.
Gātha 24-Cūrņikāra gave the very important origin of the word veyāvadiyam. By which the karmas are destructed that is veyāvadiyan-"vidārayati vedarayati va karma vedāvaditā.
Gatha 27-Āsivişa is an exalt attained by profound meditation. By this exalt the practiser becomes capable to offer boons and bans to any body according to his wish. The ferocious and poisonous snake is also called asivsa. To vex a monk is as full of fear as to irritate a poisonous cobra.
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