________________
ती सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वादश अध्ययन [१३८
(Rudradeva) O monk ! What is your fire, your fire-place, your ladles to pour ghee (refined butter), what are dried cowdungs to burn fire, your fuel, your pacifying words and what oblation do you offer the fire ? (43)
तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंगं ।
कम्म एहा संजमजोग सन्ती, होमं हुणामी इसिणं पसत्थं ॥४४॥ (मुनि)-तप ज्योति है। जीवात्मा ज्योतिस्थान है। मन-वचन-काया-ये तीनों योग कड़छियाँ हैं। शरीर कण्डे है। कर्म ईंधन है। संयम की प्रवृत्ति शान्ति पाठ है। मैं ऐसा ऋषियों द्वारा प्रशस्त यज्ञ करता हूँ ॥४४॥
(Monk-) Penance is my fire, soul is fire-place, mind-speech-body are ladles, body is dried cow-dung, karmas are fuels, restrain is my pacifying words-such sacrifice I perform which is praised by sages. (44)
के ते हरए ? के य ते सन्तितित्थे ?, कहिंसि व्हाओ व रयं जहासि ?
आइक्ख णे संजय ! जक्खपूइया !, इच्छामो नाउं भवओ सगासे ॥४५॥ (रुद्रदेव)-हे यक्ष पूजित संयमी साधु ! आपका ह्रद (सरोवर) कौन-सा है, शांति-तीर्थ कौन-से हैं ? तुम कहाँ स्नान करके मलिनता दूर करते हो? यह सब हमारी जानने की इच्छा है ॥४५॥
(Rudradeva) O Yaksa-worshipped restrained ascetic ! What is your pond, your tranquillising sacred place, where you purify yourself by bath-we wish to know all this ? (45)
धम्मे हरए बंभे सन्तितित्थे, अणाविले अत्तपसन्नलेसे ।
जहिंसि ण्हाओ विमलो विसुद्धो, सुसीइभूओ पजहामि दोसं ॥४६॥ धर्म मेरा हृद है, ब्रह्मचर्य शान्ति-तीर्थ है-जहाँ आत्मा की लेश्या प्रशस्त हो जाती है। जिसमें स्नान करके मैं भावमल और कर्मकलंक से रहित होता हूँ। शारीरिक-मानसिक संतापों से रहित, शीतल-शांत होता हुआ रागादि दोषों को दूर करता हूँ ॥४६॥
Religion is my pond, celibacy my holy spot, where the tinges of soul eulogised, and bathing in it I become free of internal dirt and blemishes of karmas. Becoming free of mentalbodily torments, thoroughly cooled and tranquil, I cut off attachment and aversion. (46)
एयं सिणाणं कुसलेहि दिळं, महासिणाणं इसिणं पसत्थं । जहिंसि ण्हाया विमला विसुद्धा, महारिसी उत्तमठाण पत्ते ॥४७॥
-त्ति बेमि। कुशल तत्त्वज्ञानी पुरुषों ने इसे ही वास्तविक नान बताया है। ऋषियों के लिए यही महास्नान प्रशस्त है। इसी धर्म जलाशय में स्नान करके महर्षियों ने कर्ममल रहित और विशुद्ध होकर उत्तम स्थान प्राप्त किया है ॥४७॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। Enlightends declare this as real bath. This great bath is excellent for sages. Bathing in this very religious-pond the sages attained the highest place, being devoid of karma-dirt and outrightly pure. (47)
-Such I speak.
Jain Educafiornternational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org