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१३७] द्वादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
कुश, यूप-यज्ञस्तम्भ, तृण, काष्ट तथा अग्नि का प्रयोग और प्रातः सन्ध्या जल का स्पर्श-इस तरह तुम मन्द-बुद्धि लोग प्राणियों और जीवों का विनाश करके पापकर्मों का संचय कर रहे हो ॥३९॥ ___By use of kusa-grass, sacrificial poles, straw, wood and touching or bathing in water every morning and evening-you ignorant and idle-minded persons injure and kill the living beings and thus you are accumulating sinful karmas. (39)
कहं चरे ? भिक्खु ! वयं जयामो ?, पावाइ कम्माइ पणुल्लयामो ?
अक्खाहि णे संजय ! जक्खपूइया !, कहं सुइट्ठ कुसला वयन्ति ? ॥४०॥ (रुद्रदेव)-हे साधु ! हम किस प्रकार प्रवृत्ति करें, यज्ञ करें ? जिससे पापकर्मों से दूर रहें। हे यक्षार्चित संयत ! हमें बताएँ कि तत्त्वज्ञानी पुरुष किस प्रकार का यज्ञ श्रेष्ठ बताते हैं ॥४०॥
(Rudradeva)-0 great sage ! How should we act. What type of sacrifice we should do ? So that we may not incur the sinful deeds. O Yaksa adored Saint ! Tell us, what type of sacrifices enlightened seers declare best. (40)
छज्जीवकाए असमारभन्ता, मोसं अदत्तं च असेवमाणा ।
परिग्गहं इथिओ माण-मायं, एवं परिन्नाय चरन्ति दन्ता ॥४१॥ (मुनि)-इन्द्रियों का दमन करने वाले श्रेष्ठ पुरुष पृथ्वीकाय आदि छह कायों के जीवों की हिंसा नहीं करते, असत्य नहीं बोलते, अदत्तादान नहीं करते, परिग्रह, स्त्री, मान और माया के स्वरूप को जानकर उनका परित्याग करते हैं ॥४१॥
(Monk) Subduer of senses the noble men never injure any living being of six species, never tell a lie, never steal, never own possessions, concepting women, pride and deceit, they renounce them. (41)
सुसंवुडो पंचहिं संवरेहिं, इह जीवियं अणवकंखमाणो ।
वोसट्ठकाओ सुइचत्तदेहो, महाजयं जयई जन्नसिढें ॥४२॥ जो पाँचों प्रकार के संवरों से संवृत होते हैं, जीवन की आकांक्षा और शरीर की आसक्ति का त्याग करते हैं, विदेह भाव में रहते हैं, पवित्र हैं; ऐसे वासनाओं पर विजय पाने वाले महाजयी पुरुष श्रेष्ठ यज्ञ करते हैं ॥४२॥
Who are well protected by five kind preventions of karma-inflow, renounce the desire of life and addiction to their own body, subsist in the feelings of bodylessness, conquerors of lust-such great victors perform the best sacrifice. (42)
के ते जोई ? के व ते जोइठाणे ?, का ते सुया ? किं व ते कारिसंग?
एहा य ते कयरा सन्ति ? भिक्खू !, कयरेण होमेण हुणासि जोइं ? |॥४३॥ (रुद्रदेव)-हे भिक्षु ! आपकी ज्योति (अग्नि) कौन-सी है? ज्योतिस्थान क्या है ? घृत आदि डालने की कड़छियाँ कौन-सी हैं ? अग्नि को दीपित वाले कण्डे क्या हैं? आपका ईंधन और शांति पाठ क्या है ? और किस होम से आप अग्नि को प्रज्वलित करते हैं-जलाते हैं ॥४३॥
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