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त सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वादश अध्ययन [१३६
हे महाभाग ! हम आपकी अर्चना करते हैं। आपका ऐसा कुछ भी नहीं है जो अर्चनीय न हो। अब आप दधि आदि अनेक प्रकार के व्यंजनों से युक्त शालि-चावलों से तैयार किया हुआ भोजन ग्रहण करिए ॥३४॥ ____Revered sir ! we adore you. There is nothing in you which cannot be adored. Now, be kind to accept this food of boiled rice of best quality mixed with curd and seasoned with many condiments. (34)
इमं च मे अस्थि पभूयमन्नं, तं भुंजसू अम्ह अणुग्गहट्ठा ।
'बाढं' ति पडिच्छइ भत्तपाणं, मासस्स उ पारणए महप्पा ॥३५॥ इस प्रचुर अन्न को मेरे अनुग्रह हेतु आप स्वीकार करिए। पुरोहित के आग्रह को मान देकर महामुनि ने एक मास की तपस्या के पारणे के लिए आहार-पानी स्वीकार किया ॥३५॥
Please accept as per your need, out of this plenty food for my favour. The great sage accepted food and water to end his month-long fast-penance. (35)
तहियं गन्धोदय - पुष्फवासं, दिव्वा तहिं वसुहारा य वुट्ठा ।
पहयाओ दुन्दुहीओ सुरेहिं, आगासे अहो दाणं च घुढें ॥३६॥ उसी समय वहाँ देवों ने पंच दिव्य प्रगट किये-(१-३) सुगन्धित पुष्पों, सुगन्धित जल एवं दिव्य धन की वृष्टि की (४) देव-दुन्दुभि बजाई और (५) अहोदान-अहोदानं का दिव्य घोष किया ॥३६॥ ___At the same time gods presented five divines-(1) rain of perfumed water, (2) shower of divine flowers (3) rain of divine wealth (4) sounded divine drums and (5) praise of noble offer. (36)
सक्खं खु दीसइ तवोविसेसो, न दीसई जाइविसेस कोई ।
सोवागपुत्ते हरिएस साहू, जस्सेरिस्सा इड्ढि महाणुभागा ॥३७॥ प्रत्यक्षतः तप की ही विशेषता-महिमा है, जाति की कोई विशेषता नहीं दिखाई देती। जिसकी ऐसी महान ऋद्धि है, वह हरिकेशबल साधु चाण्डाल-पुत्र है ॥३७॥
The speciality and greatness is apparently visualised, there is no importance of birth. Who possessesed such a great exalt the monk Harikeśabala is a son of swapāka-cāņdāla-the lowest and untouchable caste. (37)
किं माहणा ! जोइसमारभन्ता, उदएण सोहिं बहिया विमग्गहा ?
जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं, न तं सुदिह्र कुसला वयन्ति ॥३८॥ (मुनि)-हे ब्राह्मणो ! अग्नि का समारम्भ-यज्ञ आदि करके क्या तुम बाहर से-जल से शुद्धि करना चाहते हो ? जो बाह्य शुद्धि करना चाहते हैं, उन्हें कुशल पुरुष सुदृष्टिवान् नहीं कहते ॥३८॥
(Monk) Brāhamanas ! you desire to pure yourselves by tending fire, washing your skin by water, it is merely external purity. Wise do not accept the external purifiers as having true-viewpoint. (38)
कुसं च जूवं तणकट्ठमग्गिं, सायं च पायं उदगं फुसन्ता । पाणाइ भूयाइ विहेडयन्ता, भुज्जो वि मन्दा ! पगरेह पावं ॥३९॥
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