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________________ | सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र त्रयोदश अध्ययन [१४० त्रयोदशअध्ययन : चित्र सम्भूतीय पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम चित्रसंभूतीय है। चित्र और संभूत-दोनों भाई थे। पिछले पाँच जन्मों तक ये दोनों भाई साथ-साथ उत्पन्न हुए, जिए और मरे। लेकिन छठवें जन्म में बिछुड़ गये। इस बिछुड़न का कारण था-संभूत मुनि का निदान-काम-भोगों की तीव्र आकांक्षा। ___ पिछले अध्ययन 'हरिकेशी' में उग्र तपस्वी की तेजस्विता का चमत्कारी ढंग से वर्णन हुआ था और इस अध्ययन में काम-भोगों के निदान से मुनि का पतन-संसारभ्रमण का चित्रण किया गया है। साथ ही इच्छाकाम-रहित मुनि की मुक्ति का प्रतिपादन हुआ है। ___ इस प्रकार इस अध्ययन में भोग और योग का द्वन्द्व तथा उनका दुष्परिणाम एवं सुपरिणाम लक्षित होता है। योग और वियोग पर यह अध्ययन आधारित है। चित्र-संभूत के पिछले पाँच जन्मों का घटनाक्रम चित्र और संभूत के पिछले पांच जन्मों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है साकेत देश के राजा चन्द्रावतंसक के पुत्र राजा मुनिचन्द्र को राज-भोग करते-करते विरक्ति हो गई। उन्होंने मुनि सागरचन्द्र से भागवती दीक्षा ग्रहण कर ली। कठोर तपस्या करने लगे। ___ एक बार वे एक सार्थ के साथ वन में होकर एक नगर से दूसरे नगर को जा रहे थे। समीप के ग्राम में गोचरी हेतु गये और लौटे तब तक सार्थ जा चुका था। वन मार्ग से अनभिज्ञ मुनि मुनिचन्द्र वन में भटक गये। भूख-प्यास से व्यथित होकर मूर्च्छित हो गये। ___ कुछ ही दूर चार गोपाल-पुत्र अपनी गायें चरा रहे थे। उन्होंने मुनि को मूर्छित देखा तो उनकी परिचर्या की। मुनि की मूर्छा टूटी। उन्होंने उन गोपाल-पुत्रों को धर्मोपदेश दिया तो चारों गोपाल-पुत्रों की आत्मा उबुद्ध हो उठी। उन्होंने संयम ग्रहण कर लिया, साधुत्व का पालन करने लगे। उनमें से दो साधु तो श्रमणधर्म का पालन शुद्ध रूप से करते रहे किन्तु दो साधुओं को मलिन वस्त्रों से जुगुप्सा हो गई, फिर भी साधु-धर्म का पालन करते रहे। जुगुप्सा (घृणा) भाव वाले दोनों साधु मृत्यु के उपरान्त देव बने और वहाँ का आयुष्य पूर्ण कर दशार्णनगर (दशपुर) में शांडिल्य ब्राह्मण की दासी यशोमति की कुक्षि से युगल रूप में उत्पन्न हुए। एक बार दोनों भाई खेत में रात्रि के समय एक वृक्ष के नीचे सो रहे थे कि एक सर्प ने उन्हें डंस लिया। दोनों भाई मरण पाकर कालिंजर पर्वत पर युगल रूप से हरिण बने। एक बार एक शिकारी ने दोनों हरिणों को एक बाण से वींध दिया। वहाँ से मरकर दोनों मृतगंगा के तट पर राजहंस बने। वहाँ एक मछुए ने दोनों की गरदन मरोड़कर उनका प्राणान्त कर दिया। राजहंस की योनि से निकलकर दोनों वाराणसी के अति समृद्ध और चाण्डालों के अधिपति भूतदत्त के पुत्ररूप में उत्पन्न हुए। उनके नाम चित्र और संभूत रखे गये। दोनों भाइयों में परस्पर बहुत प्रेम था। उनका रूप भी सुन्दर था। Jain Eductio international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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