________________
१३१] द्वादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Here plenty of food is giving up, eating up and consuming up. You, please be definite that I subsist by begging, let the mendicant get some food, out of the eatables prepared for others. (10)
अत्तट्ठियं
सिद्धमिगपक्खं ।
उवक्खडं भोयण माहणाणं, नऊ वयं एरिसमन्न-पाणं, दाहासु तुज्झं किमिहं ठिओ सि ? ॥११॥
( याज्ञिक प्रमुख रुद्रदेव ) - यहाँ बनाया हुआ, यह भोजन केवल ब्राह्मणों के अपने लिए है, एक पक्षीय है, अतः दूसरों को नहीं दिया जा सकता। हम तुम्हें इसमें से भोजन नहीं देंगे। फिर तुम यहाँ क्यों खड़े हो ? ॥ ११ ॥
(Chief sacrificer Rudradeva). Here prepared food is only for brahamanas. It cannot be given to others. We shall not give food to you from this. Then why are you standing here? (11)
थलेसु बीयाइ ववन्ति कासगा, तहेव निन्नेसु य आससाए । एयाए सद्धाए दलाह मज्झं, आराहए पुण्णमिणं खु खेत्तं ॥१२॥
(मुनि शरीर में प्रविष्ट यक्ष ) - उत्तम फसल की आशा से कृषक जैसे ऊँची भूमि में बीज बोता है, उसी प्रकार नीची भूमि में भी बोता है। इसी श्रद्धा से मुझे भोजन देकर इस पुण्य क्षेत्र की आराधना अवश्य कर लो ॥१२॥
(The entered Yakṣa in the body of monk) Farmers with the hope of high yield sow the seeds on high ground and low ground alike. With the same belief (faith), you must propitiate this field full of merits by giving me food. (12)
खेत्ताणि अम्हं विइयाणि लोए, जहिं पकिण्णा विरुहन्ति पुण्णा । जे माणा जाइ - विज्जोववेया, ताइं तु खेत्ताइं सुपेसलाई ॥१३॥
( रुद्रदेव ) - संसार में हमें ऐसे क्षेत्र ज्ञात हैं, जिनमें बोया हुआ बीज पूर्ण रूप से उग आता है और ऐसे पुण्य क्षेत्र जाति तथा विद्या से संपन्न ब्राह्मण ही हैं ॥१३॥
(Rudradeva) We are well aware of such fields in the world, where sown seed fully grows up. Such meritorious fields are only the brahmanas, who are of high birth and well-versed in learnings. (13)
कोहो य माणो य वहो य जेसिं, मोसं अदत्तं च परिग्गहं च । ते माणा जाइविज्जाविहूणा, ताइं तु खेत्ताइं सुपावयाई ॥१४॥
( यक्ष) - जिनके जीवन में क्रोध, मान, हिंसा, असत्य, परिग्रह आदि दुर्गुणों का समावेश है वे ब्राह्मण होते हुए भी विद्या और जाति से हीन हैं, वे पाप क्षेत्र हैं ॥१४॥
(Yaksa) The life of those filled with defects, like-anger, pride, killing, falsehood, being brāhamana, they are destitute from learning and high birth, they are sinfields (14)
Jain Education International
तुभेत्थ भो ! भारधरा गिराणं, अट्ठ न जाणाह अहिज्ज वेए । उच्चावयाई मुणिणो चरन्ति, ताइं तु खेत्ताइं सुपेसलाई ॥१५॥
For Private & Personal Use Only
www.lainlibrary.org