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तर, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वादश अध्ययन [१३०
जातिमद के अंहकार से ग्रसित, हिंसक, अजितेन्द्रिय, अब्रह्मचारी और अज्ञानी ब्राह्मण इस प्रकार के वचन कहने लगे-1॥५॥
Stuck up by pride of their high birth, but killers, unsubdued senses, non-celebate and idiotic brähmaṇas began to speak such words aiming him-(5)
कयरे आगच्छइ दित्तरूवे, काले विगराले फोक्कनासे ।
ओमचेलए पंसुपिसायभूए, संकरदूसं परिहरिय कण्ठे ॥६॥ दैत्य जैसे बीभत्स रूप वाला, काला-कलूटा, विकराल, मोटी और बेडौल नाक वाला, अल्प और जीर्ण वस्त्र वाला, पिशाच जैसा गले में श्मशानी फटा चिथड़ा धारण किये हुए यह कौन आ रहा है ? ॥६॥
Who is coming here? He is swarthy dreadful, with a flat nose, pitch black complexion a very devil of a dirty man, with a filthy cloth round his neck. (6)
कयरे तुमं इस अदंसणिज्जे, काए व आसा इहमागओ सि ।
ओमचेलगा पंसुपिसायभूया, गच्छ क्खलाहि किमिह ठिओ सि ? ॥७॥ अदर्शनीय रूप वाले तुम कौन हो? किस आशा से यहाँ आये हो? अरे जीर्णवस्त्रधारी, पिशाच-जैसे दिखाई देने वाले तुम यहाँ क्यों खड़े हो ? हटो, यहाँ से चले जाओ ॥७॥
Who are you, uncanny man ? With what hope you came here ? O tom-clothed, seeming like devil, why are you standing here ? Go, get away from here. (7)
जक्खो तहिं तिन्दुयरुक्खवासी, अणुकम्पओ तस्स महामुणिस्स ।
पच्छायइत्ता नियगं सरीरं, इमाइं वयणाइमुदाहरित्था-॥८॥ उस समय तिन्दुक वृक्षवासी यक्ष जो मुनि के प्रति अनुकम्पाभावी (सेवाभावी) था, उसने अपने शरीर को छिपाकर, मुनि के शरीर में प्रविष्ट होकर इस प्रकार के वचन कहे-॥८॥
At that moment Tinduka-Yakșa, who was most fervent devotee of the great monk, invisibly possessed the body of sage and spoke thus-(8)
समणो अहं संजओ बम्भयारी, विरओ धणपयणपरिग्गहाओ ।
परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले, अन्नस्स अट्ठा इहमागओ मि ॥९॥ मैं श्रमण हूँ, संयमी हूँ, ब्रह्मचारी हूँ, धन-पचन (भोजन पकाने), परिग्रह से विरत हूँ। मैं तो भिक्षा के समय, दूसरों के लिए बनाए गये आहार के लिए तुम्हारे यज्ञ-मंडल में आया हूँ ॥९॥
I am a sage, restrained, celibate, cook no food. Hither I came for getting food, which is prepared-cooked for others. (9)
वियरिज्जइ खज्जइ भुज्जई य, अन्नं पभूयं भवयाणमेयं ।
जाणाहि मे जायणजीविणु त्ति, सेसावसेसं लभऊ तवस्सी ॥१०॥ यहाँ प्रचुर आहार दिया जा रहा है, खाया जा रहा है, उपभोग किया जा रहा है। आप यह निश्चित जानिये किं मैं भिक्षाजीवी हूँ। अतः बचे हुए आहार में से कुछ तपस्वी को भी मिल जाए ॥१०॥
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