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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
हे विप्रो ! तुम केवल वेद आदि वाणी का बोझा ही ढो रहे हो । वेदों को पढ़कर भी उनका अर्थ नहीं समझते हो। स्वयं पाचन (भोजन बनाकर ) न करके जो संयमी भिक्षु समभाव पूर्वक ऊँचे-नीचे, छोटे-बड़े घरों से प्राप्त भिक्षा द्वारा अपनी संयम यात्रा का निर्वाह करते हैं, वे ही वास्तविक पुण्य क्षेत्र हैं ॥१५ ॥
द्वादश अध्ययन [ १३२
You are only carrying the burden of Veda-words. Reading the Vedas you do not know the meaning inherent in Veda-words. The mendicants not cooking food themselves and subsist by the eatables got from high or low houses, with even mind; only they are the real merit-fields. (15)
अज्झायाणं
पडिकूलभासी, पभाससे किंनु सगासि
अम्हं ।
अवि एयं विणस्सउ अन्नपाणं, न य णं दहामु तुमं नियण्ठा ॥१६ ॥
(रुद्रदेव के छात्र ) हमारे अध्यापकों के प्रति ऐसे प्रतिकूल वचन बोलने वाले निर्ग्रन्थ ! तू क्यों बढ़-बढ़कर बोल रहा है? यह भोजन, चाहे सड़-गल कर नष्ट हो जाए, किन्तु तुमको बिलकुल भी नहीं देंगे || १६ ||
(Pupils of Rudradeva) O Knotless Monk (निर्ग्रन्थ) ! How you dare to detract our teachers? Why you are speaking so high ? This food may rot, but we will not give you a bit of it. (16) मज्झं सुसमाहियस्स, गुत्तीहि गुत्तस्स जिइन्दियस्स । जइ मे न दाहित्थ अहेसणिज्जं, किमज्ज जन्नाण लहित्थ लाहं ? ॥१७॥
समिहि
(यक्ष ) - मैं पाँच समितियों से समाहित तथा तीन गुप्तियों से गुप्त और जितेन्द्रिय हूँ । यदि मुझे यह निर्दोष भोजन नहीं दोगे तो इस यज्ञ का लाभ तुम्हें कैसे मिलेगा ? ॥१७॥
(Yakṣa) I am circumspect by five circumspections and vigilent by three restraints and have subdued to my senses. If you will not give me food then how can you get the emolutions of this sacrifice. (17)
के एत्थ खत्ता उवजोइया वा, अज्झावया वा सह खण्डिएहिं । एयं खु दण्डेण फलेण हन्ता, कण्ठम्मि घेत्तूण खलेज्ज जो णं ? ॥१८॥
( रुद्रदेव ) - यहाँ क्षत्रिय, रसोइया, अध्यापक, छात्र आदि कोई है जो इस निर्ग्रन्थ को डण्डे से, काष्ट के फलक से पीटकर और गला पकड़कर निकाल दे ॥१८॥
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(Rudradeva) Is there any Kstriya, cook, teacher present, who can turn this knotless monk out by neck, beating by sticks and wooden logs-sticks etc.. (18)
अज्झायाणं वयणं सुणेत्ता, उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा । दण्डेहि वित्तहि कसेहि चेव, समागया तं इसि तालयन्ति ॥ १९ ॥
अध्यापकों के ऐसे वचन सुनकर वहाँ बहुत से कुमार दौड़ते हुए आए और ऋषि (हरिकेशबल) को डंडों से, बेंतों से, चाबुकों से पीटने लगे ॥१९॥
Hearing such harsh words of teachers, rushed forward many youngsters. They began to beat monk Harikeśabala by canes, sticks and whips. (19)
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