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१२१] द्वादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वादश अध्ययन : हरिकेशीय
पूर्वालोक
प्रस्तुत अध्ययन का नाम इसके प्रमुख पात्र हरिकेशबल के नाम पर प्रसिद्ध हुआ है।
पिछले बहुश्रुत पूजा अध्ययन में बहुश्रुत की तेजस्विता का वर्णन किया गया है और प्रस्तुत अध्ययन में बहुश्रुत तथा शुद्ध श्रमणधर्म का पालन करने वाले मुनि हरिकेशबल की तेजस्विता और विशिष्ट प्रभावशालिता का वर्णन बड़े ही रोमांचक और चमत्कारी ढंग से प्रतिपादित हुआ है।
मुनि हरिकेशबल के चाण्डाल कुल में जन्म, पूर्व-जन्म तथा इस जन्म की विशिष्ट घटनाएँ, श्रमणत्व धारण और पालन आदि के संबंध में जिज्ञासा होनी भी स्वाभाविक है और उनकी तेजस्विता के लिए इन घटनाओं को जानना भी आवश्यक है।
कथासूत्र -
संक्षेप में हरिकेशबल से संबंधित घटनाएँ इस प्रकार हैं
मथुरानरेश राजा शंख संसार से विरक्त हुए । उन्होंने उग्र तप किया। तप के प्रभाव से अनेक विशिष्ट लब्धियाँ उन्हें प्राप्त हो गईं।
ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए वे हस्तिनापुर पधारे। भिक्षा के लिए नगर की ओर चले । नगर-प्रवेश के दो मार्ग थे। उनमें से एक मार्ग पर लोगों को आते-जाते न देखकर शंख-मुनि विचार में पड़ गये। एक व्यक्ति को उसके घर के बाह्य भाग में बैठा देखकर उससे नगर प्रवेश का मार्ग पूछा ।
वह व्यक्ति ब्राह्मण सोमदत्त था । सोमदत्त जात्यभिमान से ग्रसित और श्रमणद्वेषी था । उसने गलत मार्ग हुए कहा - "यह मार्ग निकट का है। आप शीघ्र ही नगर में पहुँच जायेंगे ।"
बताते
तपस्वी मुनि उसी मार्ग पर चल दिये।
वास्तविकता यह थी कि उस मार्ग का नाम 'हुताशन' अथवा 'हुतवह रथ्या' था । वह मार्ग अग्नि की भांति गरम रहता था, उस पर चलना कठिन था; लेकिन ग्रीष्म काल में तो वह तपे हुए तवे की भाँति
जलता था।
सोमदत्त ने शंख मुनि को वह मार्ग द्वेषवश बताया था; लेकिन जब उसने देखा कि मुनि तो गजगति से उस मार्ग पर शांतिपूर्वक चले जा रहे हैं तो वह चकित हुआ। उसने स्वयं उस मार्ग पर चलकर देखा तो उसे वह मार्ग हिम के समान शीतल लगा। वह समझ गया कि ये विशिष्ट लब्धिधारी मुनि हैं, इनके तपःप्रभाव से यह उष्ण मार्ग शीतल हो गया है।
चमत्कार को नमस्कार करता हुआ ब्राह्मण सोमदत्त शीघ्र ही शंख मुनि के पास पहुँचा और अपने अपराध की क्षमा माँगने लगा ।
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जैन श्रमण तो क्षमावीर होते ही हैं, क्षमा कर दिया। साथ ही सोमदत्त की जिज्ञासा पर धर्म का उपदेश दिया । उपदेश से प्रतिबुद्ध होकर सोमदत्त दीक्षित हो गया, तपस्या करने लगा; लेकिन जात्यभिमान और रूपमद करता ही रहा । अन्त समय तक भी वह जाति मद के चंगुल से छूट नहीं सका | चारित्र - पालन के परिणामस्वरूप आयु पूर्ण कर वह देव बना ।
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