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११५] एकादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासई ॥१२॥ कलह-डमरवज्जए, बुद्धे अभिजाइए ।
हिरिमं पडिसंलीणे, सुविणीए त्ति वुच्चई ॥१३॥ पन्द्रह स्थानों-गुणों से सुविनीत कहा जाता है(१) नम्रता। (२) अचपलता-स्थिरता। (३) दम्भ का अभाव-सरलता। (४) अकौतुहलत्व-गंभीरता-||१०॥
(५) किसी की निन्दा न करना। (६) लम्बे समय तक क्रोध न करते रहना। (७) मित्रों के प्रति कृतज्ञता। (८) श्रुत-प्राप्ति होने पर भी अहंकार नहीं करना-॥११॥
(९) स्खलना होने पर भी उसका तिरस्कार न करना। (१०) मित्रों पर क्रोध न करना। (११) अप्रिय मित्र के प्रति भी एकान्त में उसके कल्याण की बात कहना-॥१२॥
(१२) वाक्कलह और मार-पीट न करना। (१३) अभिजात्यता-कुलीनता (शालीनता)। (१४) लज्जाशीलता। (१५) प्रतिसंलीनता-आत्मलीनता।
इन १५ गुणों को धारण करने वाला साधु सुविनीत होता है ॥१३॥ By fifteen virtuous qualities an adept called well-behaved. These qualities are(1) modesty; (2) stability: (3) simplicity; (4) free from curiosity-sobemess. (10)
(5) abuses no body; (6) not persevering wrath for long time; (7) gratefulness towards friends; (8) unproudy of learning (knowledge). (11)
(9) not disgraces the preceptors etc., for their petty slips; (10) no anger with friends; (11) to speak well even of a undear friend in his absence. (12)
(12) to abstain from quarrels and rows; (13) politeness; (14) shyness; (15) fixing himself in his own soul (calm).
The ascetic who possesses these fifteen virtuous qualities called wellbehaved-disciplined. (13)
वसे गुरुकुले निच्चं, जोगवं उवहाणवं ।
__पियंकरे पियंवाई, से सिक्खं लद्धमरिहई ॥१४॥ सदा गुरुकुल-गुरुजनों की सेवा में रहने वाला, योग उपधान-शास्त्र-स्वाध्याय संबंधी तप करने वाला तथा प्रिय करने वाला और प्रिय बोलने वाला साधु शिक्षा-प्राप्ति के योग्य होता है ॥१४॥
Who always lives in the service of preachers and observes the penances which are prescribed with studying holy scriptures, sweet speaking and doing agreeable is worth to receive instructions. (14)
जहा संखम्मि पयं निहियं दुहओ वि विरायइ ।
एवं बहुस्सुए भिक्खू, धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥१५॥ जिस प्रकार शंख में रखा हुआ दूध स्वयं अपने और अपने आधार को सुशोभित करता है, उसी प्रकार "श्रुत भिक्षु में धर्म, कीर्ति और श्रुत भी अपने और अपने आधार से सुशोभित होते हैं, मल और विकार इत रहते हैं ॥१५॥
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