________________
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
On having heard the true religion, it is more difficult to fix faith in it; because many men are false-believers, they practise superstitions. Hence Gautama! be not negligent even for awhile. (19)
१०७ ] दशम अध्ययन
धम्मं पि हु सद्दहन्तया, दुल्लहया काएण फासया । इह कामगुणेहिमुच्छिया, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२०॥
उत्तम धर्म पर श्रद्धा होने के उपरान्त भी उसका आचरण करना और भी दुष्कर है; क्योंकि बहुत से श्रद्धावान भी काम भोगों में आसक्त रहते हैं। इसलिए हे गौतम ! एक क्षण का भी प्रमाद मत करो ॥२०॥
Fixing the faith in true religion, to practise it, is even more difficult; for many men are seen indulged in pleasures and amusements. Hence Gautama! be not careless even for a moment. (20)
परिजूरइ ते
सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते ।
से सोयबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २१ ॥
तुम्हारा शरीर जर्जरित हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं, सुनने की शक्ति कम हो रही है । हे गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत करो ॥२१॥
Your body is weakening, your hairs turning whitish, the power of hearing decreasing. Hence Gautama ! be not negligent even for a moment. (21)
परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से चक्खुबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२२॥
तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, सिर के बाल सफेद हो रहे हैं, नेत्र ज्योति मन्द हो रही है । हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो ॥२२॥
Your body is decaying, your hairs are turning whitish-yellow, your eye-sight is regularly dimming. So Gautama ! be not careless even for an instant. (22)
सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते ।
परिजूरइ ते से घाणबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २३ ॥
तुम्हारा शरीर कमजोर हो रहा है, सिर के केश श्वेत हो रहे हैं, सूँघने की शक्ति घटती जा रही है । है गौतम ! एक क्षण का भी प्रमाद मत करो ॥ २३ ॥
Your body is declining, your hairs are turning yellowish white, your strength of smelling is waning. So Gautama ! have no neglience even for awhile. ( 23 )
परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से जिम-बले य हायई, समयं गोयम ! मा पमाय ॥ २४ ॥
तुम्हारा शरीर परिजीर्ण हो रहा है, केश श्वेत हो रहे हैं, जिह्वा बल - रस लेने और बोलने की शक्ति कम हो रही है। हे गौतम ! एक क्षण का भी प्रमाद मत करो ॥२४॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org