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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
दशम अध्ययन [ १०८
Your body is weakening, your hairs are turning whitish, your tongue-power, of tasting and speaking is deteriorating. Hence Gautama ! be not negligent even for a moment. (24)
परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से फास-बले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २५ ॥
तुम्हारा शरीर जर्जरित हो रहा है, केश श्वेत हो रहे हैं, कायबल क्षीण होता जा रहा है। हे गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत करो ॥ २५ ॥
Your body is declining, your hairs are turning whitish, the strength of your body is declining. So Gautama ! be not careless even for awhile. (25)
परिजूरइ ते से सव्वबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २६ ॥
सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते ।
तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश धवल हो रहे हैं, सभी प्रकार के बल क्षीण हो रहे हैं। हे गौतम ! एक क्षण का प्रमाद मत करो ॥ २६ ॥
Your body is weakening, your hairs are turning white, all type of strength is decaying. Therefore Gautama ! have no negligence even for a moment. (26)
अरई गण्डं विसूइया, आयंका विविहा फुसन्ति ते । विवडइ विद्धंसइ ते सरीरयं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २७ ॥
वात या पित्त विकार से होने वाला चित्त का उद्वेग, फोड़ा, विसूचिका (हैजा-वमन) आदि विविध प्रकार के शीघ्रघाती रोगों से तुम्हारा शरीर गिर जाता है, विध्वस्त हो जाता है। अतः हे गौतम ! एक क्षण भर का भी प्रमाद मत करो ॥२७॥
Despondency, boils, cholera, mortal diseases of many kind wrecked your body, so it wastes and befall. Therefore Gautama ! have riot negligence even for awhile. (27)
वोछिन्द सिणेहमप्पणो, कुमुयं सारइयं व पाणियं । से सव्वसिणेहवज्जिए, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२८॥
शरद् ऋतु का चन्द्र विकासी कमल जैसे जल से लिप्त नहीं होता उसी प्रकार तुम भी अपने स्नेहबंधन को तोड़ दो, उसमें लिप्त मत बनो और फिर सभी प्रकार के स्नेहों को त्याग दो। हे गौतम! इस कार्य मेंस्नेह बंधनों को तोड़ने में क्षण भर भी प्रमाद मत करो ॥२८॥
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As the moon-bloom autumn lotus does not stick to water flowing around and cast away it. In the same way you broke up all the ties of attachments, do not incline towards them. O Gautama! take no time in casting aside all connections and be not negligent even for a moment. (28)
चिच्चाण धणं च भारियं पव्वइओ हि सि अणगारियं । मावन्तं पुणो वि आइए, समयं गोयम ! मा पमाय ॥ २९ ॥
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