________________
on सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
नवम अध्ययन [९८
अहे वयइ कोहेणं, माणेणं अहमा गई ।
माया गईपडिग्घाओ, लोभाओ दुहओ भयं ॥५४॥' । क्रोध से नीच गति और मान से अधम गति की प्राप्ति होती है तथा छल-कपट-माया सुगति को रोक देती है और लोभ से इस लोक तथा परलोक-दोनों में भय होता है ॥५४॥ ___Anger takes to mean existence (नीच गति), the pride to low (अधम) existence, the deceit obstructs the gracious existence ( fa) and the greed begets dreadfulness in this life and the life to come after-both worlds. (54)
अवउज्झिऊण माहणरूवं, विउव्विऊण इन्दत्तं ।
वन्दइ अभित्थुणन्तो, इमाहि महुराहिं वग्गूहि-॥५५॥ विप्ररूप को त्यागकर देवेन्द्र अपने वास्तविक रूप में आया तथा मधुर और प्रशस्त वचनों से नमि राजर्षि की वन्दना करता हुआ कहने लगा-॥५५॥
Sakra, the king of gods, made his apperance in his full lustre, by throwing off the brāhmaṇa guise, he bowed down to the royal seer Nami and praised him with these sweet words-(55)
'अहो ! ते निज्जिओ कोहो, अहो ! ते माणो पराजिओ ।
अहो ! ते निरक्किया माया, अहो ! ते लोभो वसीकओ ॥५६॥ अहो ! तुमने क्रोध पर विजय प्राप्त की। अहो ! तुमने मान को पराजित कर दिया। अहो ! तुमने छल-कपट-माया को दूर कर दिया। अहो ! तुमने लोभ को वश में कर लिया ॥५६॥ _Bravo ! you have conquered anger; Bravo ! you have overcame pride; Bravo ! you have vanquished the deceit; Bravo ! you have subjugated greed. (56)
अहो ! ते अज्जवं साहु, अहो ! ते साहु मद्दवं ।
____ अहो ! ते उत्तमा खन्ती, अहो ! ते मुत्ति उत्तमा ॥५७॥ अहो ! तुम्हारा आर्जव उत्तम है। अहो ! तुम्हारा मार्दव उत्तम है। तुम्हारी क्षमा और निर्लोभता उत्तम है ॥५७॥
Your simplicity is full of grace, your mildness is also graceful. Your forgiveness is utmost and your ungreediness is of highest rank. (57)
इहं सि उत्तमो भन्ते ! पेच्चा होहिसि उत्तमो ।
लोगत्तमुत्तमं ठाणं, सिद्धिं गच्छसि नीरओ ॥५८॥' भगवन् ! आप इस लोक में भी उत्तम हैं और परलोक में उत्तम होंगे। कर्म-मल से रहित होकर आप लोक में उत्तमोत्तम स्थान-सिद्ध-स्थान को प्राप्त करेंगे ॥५८॥
O venerable! You are excellent in this world (life) and would be super-excellent in next world (life). Destroying all karma-dust you will obtain the super excellent liberation-abode. (58) .
एवं अभित्थुणंतो, रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए । पयाहिणं करेन्तो, पुणो पुणो वन्दई सक्को ॥५९॥
Jain Education
Ternational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org