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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
इस प्रकार देवेन्द्र - शक्रेन्द्र ने उत्तम श्रद्धा से नमि राजर्षि की स्तुति और प्रदक्षिणा की और बार-बार वन्दना की ॥५९॥
९९ ] नवम अध्ययन
Thus praising the royal sage with utmost right faith, Śakrendra, the king of gods; circumambulated (प्रदक्षिणा दी ) with devotion, and bowed down many many times. (59)
तो वन्दिऊण पाए, चक्कंकुसलक्खणे मुणिवरस्स । आगासेणुप्पइओ, ललियचवलकुंडलतिरीडी ॥६०॥
तत्पश्चात नमि मुनिराज के चक्र और अंकुश के लक्षणों से युक्त पाद-पद्मों की वन्दना करके ललित तथा चपल कुण्डल और मुकुट धारण किये हुए देवराज शक्रेन्द्र आकाश में ऊपर चला गया ॥ ६० ॥
Thus bowing down with devotion at the feet of royal seer, which (the feet) were marked with disk (wheel-चक्र) and goad (hook - अंकुश) the Sakra with his crown and his ear-rings dazzling and dangling (prettily trembling ) flew in the space for his celestial abode. (60)
नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइओ । चइऊण गेहं वइदेही, सामण्णे पज्जुवट्ठिओ ॥ ६१ ॥
राजर्षि नमि ने अपनी आत्मा को आत्म-भावों में विनत किया, साक्षात् इन्द्र द्वारा प्रेरित किये जाने पर भी धर्म से विचलित नहीं हुए, गृह तथा विदेह देश की राज्यलक्ष्मी को त्याग कर श्रामण्य भाव में स्थिर रहे ॥ ६१ ॥
Royal seer Nami fixed his il in soul-virtues (thoughts) did not fickle from religious rituals, even inspired by king of gods in person, and renouncing home and the kingdom of videharājya, remained steady in sage-hood. (61)
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एवं करेन्ति संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा । विणियट्टन्ति भोगे, जहा से नमी रायरिसी ॥६२॥
-ति बेमि ।
संबुद्ध, पण्डित, प्रविचक्षण साधक ऐसा ही आचरण करते हैं; नमि राजर्षि के समान काम-भोगों से निवृत्त होकर आत्म-साधना में निरत होते हैं ॥ ६२ ॥ - ऐसा मैं कहता हूँ ।
So do the enlightened, witty and proficient adepts; like royal seer Nami they abandon pleasures, amusements and addict to self-transact (आत्मसाधना ) (62) -Such I speak
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