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९७] नवम् अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पुढवी साली जवा चेव, हिरण्णं पसुभिस्सह ।
पडिपुण्णं नालमेगस्स, इइ विज्जा तवं चरे ॥४९॥' समस्त पृथ्वी, चावल, जी तथा अन्य धान्य, पशु और स्वर्ण-ये सभी एक व्यक्ति की भी इच्छा पूरी नहीं कर सकते-यह जानकर तप का आचरण करे ॥४९॥
The whole earth with its crops of rice, barley and other grains and corns along with all wealths and cattles and gold and other metals-all these cannot fulfil the desire of a single man. Knowing this fact, one should practise penances. (49)
एयमठे निसामित्ता, हेऊकारण-चोइओ ।
तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी-॥५०॥ नमि राजर्षि के इस कथन को सुन, हेतु-कारण से प्रेरित देवेन्द्र ने उनसे कहा-॥५०॥
Hearing the reply of royal seer Nami, the king of gods inspired by reasons and causes, said these words unto him-(50)
'अच्छेरगमब्भुदए, भोए चयसि पत्थिवा !
असन्ते कामे पत्थेसि, संकप्पेण विहन्नसि ॥५१॥" हे पृथ्वीनाथ ! आश्चर्य है कि अभ्युदय काल में प्रत्यक्ष प्राप्त भोगों का तो त्याग कर रहे हो और अप्राप्त भोगों की इच्छा कर रहे हो; तुम अपने संकल्प से ही प्रताड़ित हो रहे हो ॥५१॥
O the owner of the earth, the king ! it is strange and unusual that you are renouncing the acquired and visible pleasures and annusements in your progressive period of life and willing the unacquired, non-existing and non-visible pleasures; thus you will have to suffer by your own resolve. (51)
एयमझें निसामित्ता, हेऊ-कारणचोइओ ।
तओ नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी-॥५२॥ देवेन्द्र के इस कथन को सुन और हेतु-कारण से प्रेरित हो नमि राजर्षि इन्द्र से कहते हैं-॥५२॥
On hearing such words of god's-ruler, the royal seer Nami, pursuing his reasons and arguments said these words unto him-(52)
"सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा ।
कामे पत्थेमाणा, । 'कामा जन्ति दोग्गइं ॥५३॥ जगत के काम-भोग शल्य हैं, विष हैं और :.'शीविष सर्प के समान हैं। जो लोग काम-भोगों की इच्छा रखते हैं लेकिन किसी कारणवश भोग नहीं पाते, वे भी दुर्गति में जाते हैं ॥५३॥ The mundane pleasures, lusts, desires are like the thorns that rankle, are poisons, the omous cobra. He, who hankers after the lusts, but cannot enjoy pleasures due to voidable causes, still they are to take birth in ill-existences (guifa). (53)
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