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९३नवम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ती
एयमझें निसामित्ता, हेऊकारण - चोइओ ।
तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी-॥२७॥ इस उत्तर को सुन, हेतु-कारण से प्रेरित इन्द्र ने नमि राजर्षि से कहा-॥२७॥
Hearing this reply of royal sage Nami, the ruler of gods inspired by his reasons and arguments spoke unto him-(27)
'आमोसे लोमहारे य, गंठिभेए य तक्करे ।
नगरस्स खेमं काऊणं, तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥२८॥ हे क्षत्रिय ! तुम लुटेरों, प्राणघातक दस्युओं, हत्यारों, गिरहकटों और चोरों-तस्करों से नगर को सुरक्षित करके तदुपरान्त श्रमणत्व धारण कर लेना ॥२८॥
O Kşatriya ! First you safe your city from robbers, burglars, killers, pick pockets, thieves etc., and then be consecrated. (28)
एयमलृ निसामित्ता, हेऊकारण - चोइओ ।
तओ नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी-॥२९॥ इन्द्र के इस कथन को सुन, हेतु-कारण से प्रेरित नमि राजर्षि ने देवेन्द्र से कहा-॥२९॥
Hearing these words of king of gods, the royal seer Nami inspired by reasons and causes told him these words-(29)
'असइं तु मणुस्सेहिं, मिच्छादण्डो पगँजई ।
अकारिणोऽत्थ बज्झन्ति, मुच्चई कारगो जणो ॥३०॥" मनुष्यों के द्वारा कई बार गलत दण्ड का भी प्रयोग किया जाता है। निर्दोष दण्डित हो जाते हैं और अपराधी साफ छूट जाते हैं ॥३०॥
Sometimes men give the punishment in wrong way, innocents are caught and harrassed while the culprits escape. (30)
एयमझें निसामित्ता, हेऊकारण-चोइओ ।
तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी-॥३१॥ इस उत्तर को सुन, हेतु-कारण से प्रेरित देवेन्द्र ने नमि राजर्षि से इस प्रकार कहा-॥३१॥
Hearing this reply of royal seer Nami, the ruler of gods inspired by reasons and arguments told unto him-(31)
'जे केई पत्थिवा तुब्भं, नाऽऽनमन्ति नराहिवा !
वसे ते ठावइत्ताणं, तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥३२॥' हे राजन् ! जो राजा तुम्हारे समक्ष झुकते नहीं, उन पर विजय प्राप्त करके वश में करो तब प्रव्रज्या ग्रहण कर लेना ॥३२॥
O king ! Those rulers who have not submitted to you, subjugate them and then be consecrated. (32)
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