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In सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
नवम अध्ययन [९२
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पराक्रम को धनुष तथा ईर्या समिति को उस धनुष की प्रत्यंचा (डोर), धृति को उसकी मूठ तथा सत्य से उसे बाँधकर-॥२१॥
Creating the bow of spiritual effort, its string of circumspective movement, stediness its poles and tied with the chord of truth-(21)
तवनारायजुत्तेण, भेत्तूणं कम्मकंचुयं ।
मुणी विगयसंगामो, भवाओ परिमुच्चए ॥२२॥ तपरूपी बाण से युक्त उस धनुष के द्वारा कर्म-कवच को छिन्न-भिन्न कर, अन्तर्युद्ध में विजय प्राप्त कर मुनि संसार-भ्रमण से मुक्त हो जाता है ॥२२॥
Harness the arrow of penance, by such a bow piercing the karma-armour and winning victory in this internal war-the monk gets liberation from the cycles of births and deaths. (22)
एयमढ़ निसामित्ता, हेऊकारण-चोइओ ।
तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी-॥२३॥ नमि राजर्षि के इस उत्तर को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्र ने नमि राजर्षि से कहा-॥२३॥
Hearing this allegorical and metaphorical reply of royal sage Nami full with spiritualism, the king of gods inspired by his reasons and arguments said unto him-(23)
'पासाए कारइत्ताणं, वद्धमाणगिहाणि य ।
वालग्गपोइयाओ य, तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥२४॥ हे क्षत्रिय ! प्रासाद, वर्द्धमान गृह, चन्द्रशालाएँ (सरोवर के मध्य निर्मित छोटा महल, जलमहल या हवामहल) बनवाओ, तदुपरान्त दीक्षा ग्रहण करना ॥२४॥
OKsatriya ! Build up strong palaces, apartments, excellent buildings with diverse architectural designs, exquisite turrents (a chamber (जल महल) between a tank) and then you accept consecration. (24)
एयमढं निसामित्ता, हेऊकारण - चोइओ ।
तओ नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी-॥२५॥ इस कथन को सुनकर हेतु-कारण से प्रेरित नमि राजर्षि ने देवेन्द्र से कहा ॥२५॥
Having heard these words and inspired by his reasons and arguments the royal sage Nami replied the ruler of gods-(25)
'संसयं खलु सो कुणई, जो मग्गे कुणई घरं ।
जत्थेव गन्तुमिच्छेज्जा, तत्थ कुव्वेज्ज सासयं ॥२६॥ जिसके मन में शंका होती है, वही मार्ग में घर का निर्माण करता है। जहाँ जाने की इच्छा हो, वहीं अपना शाश्वत-स्थायी निवास बनाना चाहिए ॥२६॥
Suspicious minds erect the house on the way. One should make his eternal home, if he is sure to attain the goal. (26)
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