________________
प्राथमिक
शास्त्र मनुष्य का तृतीय नेत्र है। शास्त्र के स्वाध्याय से जब मनुष्य का अन्तर विवेक जागृत होता है तो वह मन के कलुषित विचारों, विकारों और दुर्भावों का नाश कर परम आनन्दमय आत्म-स्वरूप का दर्शन कर लेता है। इसलिए परम आनन्द की कामना करने वाले प्रत्येक मनुष्य के लिए शास्त्र का स्वाध्याय कल्पवृक्ष के समान है।
जैन शास्त्रों में उत्तराध्ययन सूत्र का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। यह भगवान महावीर की अन्तिम वाणी है। इसमें मानव जीवन के सर्वांगीण विकास और अभ्युदय के लिए विविध दृष्टियों से सुन्दर उपयोगी शिक्षाओं का संग्रह हुआ है। अतः इसे हम जैन धर्म की “गीता" कह सकते हैं। दीपमालिका के दिन जो भगवान महावीर का निर्वाण दिवस भी है, स्थान-स्थान पर उत्तराध्ययन सूत्र के वाचन और श्रवण की पावन-परम्परा है। उस दिन इस सूत्र का पठन-श्रवण विशेष महत्व रखता है। यों भी उत्तराध्ययन सूत्र प्रत्येक श्रद्धालु और जिज्ञासु के लिए पठनीय तथा मननीय है। ___उत्तराध्ययन सूत्र की वर्णन-सामग्री बहुत ही रोचक तथा शिक्षाप्रद होने के साथ ही आत्म-जागृति में भी अतीव सहायक है। यही कारण है कि अब तक उत्तराध्ययन सूत्र के सैंकड़ों संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, फिर भी प्रतिदिन इसकी मांग बनी हुई है।
उत्तराध्ययन सूत्र के चित्र युक्त प्रकाशन की अभिनव कल्पना सचमुच में एक मनोरम और लोकोपकारी साहसिक संकल्प है। यह तो सुनिश्चित है कि गंभीर से गंभीर और जटिल विषय भी चित्र के द्वारा बहुत ही सुगम और सुबोध बन जाते हैं। अरूप विषय वस्तु को रूपायित कर बुद्धिगम्य बनाने में चित्रों की अपनी उपयोगिता है, इस दृष्टि से जैन सूत्रों के प्रेरक प्रसंगों और गहन तात्विक विषयों को चित्रित कर प्रकाशित करने का यह ऐतिहासिक प्रयत्न आगम-प्रकाशन की दिशा में एक नया प्रयोग सिद्ध होगा। इससे आगमों का कठिन विषय भी पाठकों के लिए रुचिकर और सहज-गम्य बन सकेगा। इस साहसिक सत्संकल्प और सत्प्रयास के लिए विद्वद्रल श्री अमर मुनि जी का जैन साहित्य के अभिनव प्रयोग क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान
आगम रत्नाकर, जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी म. के पौत्र शिष्य-राष्ट्र सन्त उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज आधुनिक युग में महावीर युग के प्रतिनिधि प्रतीक, सरल परिणामी, निर्मल आत्मा देवगुरुभक्त और आगम वाणी के अत्यन्त श्रद्धालु सन्त रल हैं। आपश्री की प्रेरणा से आपके प्रतिभाशाली शिष्यरल उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. ने सूत्रकृतांग, प्रश्नव्याकरण और भगवती जैसे विशाल जैन सूत्रों की हिन्दी टीकाएँ लिखकर स्व. आचार्य देव श्री आत्माराम जी महाराज के श्रुत-सेवा के अवशिष्ट कार्य को पूर्णता प्रदान करने का महान प्रयत्ल किया है। आगम सम्पादन की उसी उज्ज्वल परम्परा में अब एक अभिनव शुभ प्रयत्न सम्पन्न हो रहा है : उत्तराध्ययन सूत्र का चित्रमय प्रकाशन। - कुछ वर्ष पूर्व कल्पसूत्र का सचित्र प्रकाशन हुआ था। वह हमारे सामने है। प्राचीन चित्र शैली के छोटे-छोटे चित्र हैं उसमें। प्राचीनता की दृष्टि से या स्वर्ण-खचित होने की दृष्टि से उनका अपना महत्व है, किन्तु चित्रों की रमणीयता, सहज भावाभिव्यक्ति और रंग-सज्जा की दृष्टि से कोई उल्लेखनीय बात उनमें
लगती। कल्पसत्र के अतिरिक्त अन्य आगमों का चित्रमय प्रकाशन अब तक देखने में नहीं आया है। एक वर्ष पूर्व हमने जब श्री उत्तराध्ययन सूत्र के चित्रमय प्रकाशन की योजना बनाई थी, तो हमारे सामने किसी प्राचीन सचित्र आगम का आधार नहीं था। इस विषय में अनेक विद्वानों से सम्पर्क किया गया। कुछ
(9)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org