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ज्ञान- भंडारों का अवलोकन भी किया। इसी प्रसंग में श्री तिलोक रत्न स्थानकवासी जैन परीक्षा बोर्ड अहमदनगर का हस्त लिखित शास्त्र भंडार भी देखने की सुविधा प्राप्त हुई। पूज्य आचार्य सम्राट श्री आनन्द ऋषि जी म. की कृपा से श्री कुन्दन ऋषि जी म. ने स्वयं बड़ी उदारतापूर्वक ज्ञान भंडार अनेक सचित्र प्रतियाँ दिखाईं। उनमें उत्तराध्ययन सूत्र कुछ प्रासंगिक चित्र प्राप्त हुए जिनमें भारंड पक्षी का प्राचीन चित्र महत्वपूर्ण था। इसके पश्चात् कला मर्मज्ञ श्री विजय यशोदेव सूरी जी म. के ज्ञान भंडार जैन साहित्य मन्दिर पालीताणा में भी दो दिन तक मैंने प्राचीन संचित्र आगमों का अनुसंधान किया। स्वयं आचार्य श्री यशोदेव सूरी जी म. ने उत्तराध्ययन सूत्र की स्वर्णाक्षरों में लिखित कुछ प्राचीन प्रतियाँ तथा एक स्वर्ण-चित्रांकित प्रति भी बताई। इस अवलोकन से हमें प्राचीन चित्र शैली को समझने तथा उसे आधुनिक चित्र शैली में परिवर्तित करने की कल्पना में काफी सहायता मिली। हम उक्त ज्ञान भंडारों व आचार्यदेवों की कृपा के सदा ऋणी रहेंगे।
उत्तराध्ययन सूत्र के ३६ अध्ययनों के ५२ बहुरंगी चित्र तथा ७ दो रंगे चित्र इस आगम के लिए तैयार किये गये हैं। चित्र संख्या की निश्चित सीमा के कारण अन्य अनेक उपयोगी विषयों को छोड़ भी दिया है। चित्रों की कल्पना में आगम की टीका आदि के वर्णन, अन्य ग्रंथों के वर्णन तथा प्राचीन परम्परा हमारी सहायक रही है। चूँकि इन चित्रों का मूल आधार कोई प्राचीन चित्र नहीं है, किन्तु सिर्फ टीकागत जानकारी एवं हमारी परम्परा ही है, अतः इन के रूपांकन में मतभेद भी रह सकते हैं, और भूल भी रह सकती है। अपनी-अपनी दृष्टि से भिन्न प्रस्तुतीकरण भी हो सकता है। अतः इन चित्रों के साथ हमारा कोई आग्रह या स्थापना नहीं है, किन्तु मात्र आगमों के गंभीर विषय को सुबोध तथा रुचिकर बनाने की दिशा में एक शुभ अध्यवसाय युक्त प्रयत्न है। जहाँ-जहाँ मुनि की वेश-भूषा का प्रश्न है, वहाँ हमने समझ-बूझकर अपनी स्थानकवासी परम्परा को ही मान्यता दी है। क्योंकि आगम और इतिहास की भाँति परम्परा भी एक महत्वपूर्ण आधार होता है। अस्तु -
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उत्तराध्ययन सूत्र 'के हिन्दी अनुवाद के साथ ही अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। आज भारत के बाहर बसे हजारों जैन परिवार, तथा हजारों अहिन्दीभाषी जैन धर्म एवं आगमों का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं। उनके लिए हिन्दी की अपेक्षा अंग्रेजी भाषा ही एक सक्षम माध्यम हो सकती है। अतः ग्रंथ की व्यापकताको दृष्टिगत रखकर हमने अंग्रेजी अनुवाद देना आवश्यक समझा है। हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद एवं टिप्पण लेखन में जिन-जिन विद्वानों तथा पुस्तक प्रकाशकों का सहयोग प्राप्त हुआ है, हम हृदय से उनके आभारी हैं, कृतज्ञ हैं । आधारभूत ग्रंथों की सूची भी साथ में दी जा रही है।
इस सम्पादन एवं चित्रांकन में मुख्य सम्पादक उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी का सम्पादन- श्रम, मार्गदर्शन तथा सतत प्रेरणा इस कार्य का मूल आधार है। यह उन्हीं की विशुद्ध बुद्धि एवं सतत श्रम का मधुर फल है। अतः उनके प्रति आभार ज्ञापन जैसी औपचारिकता अपेक्षित नहीं है। उपप्रवर्तिनी विदुषी रत्न पूज्य महासती श्री सरिता जी एम. ए., पी-एच. डी. का मार्गदर्शन, सहयोग हमारे लिए विशेष सौभाग्य की बात है। पूज्य सरिता जी म. स्वयं जैन आगमों की गंभीर विदुषी हैं, उनकी तर्क-प्रवण प्रज्ञा, विनम्र मधुर स्वभाव और सूक्ष्म निरीक्षण कला का हमें गौरव है कि समय-समय पर उनके मार्गदर्शन से हम लाभान्वित होते रहे हैं। भविष्य में भी हमें उनका आत्मीय सहयोग मिलता रहेगा।
चित्रकार सरदार पुरुषोत्तमसिंह एवं उनके सुपुत्र हरिबिंदरसिंह तथा अंग्रेजी अनुवाद के लिए डा. बृजमोहन जैन का आभारी हूँ। साथ ही प्रकाशन में अर्थ सहयोग देने वाले उदारमना सद्गृहस्थों के प्रति भी कृतज्ञ हूँ जिन सबके सहयोग और सौजन्य से यह एक ऐतिहासिक दिव्य साहित्य-मणि पाठकों के कर-कमलों में पहुँच रही है। प्रसन्नता !
- श्रीचन्द सुराना "सरस"
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