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an सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सप्तम अध्ययन [७४
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मानव की आयु अत्यल्प है, संनिरुद्ध है। इसमें प्राप्त काम-भोग कुश के अग्रभाग पर स्थित जलबिन्दु के समान हैं। फिर न जाने किस कारण से प्राणी (अज्ञानी) अपने योग-क्षेम को नहीं समझता ॥२४॥
The duration (age) of man is very short and is obstructible by many obstacles. The pleasures of this life are like a dew-drop at the tip of kuśa-grass. Even then, why the ignorant being (man) does not understand his welfare (preservation of attained virtues (merits) and enhance them). (24)
इह कामाणियट्टस्स, अत्तद्वै अवरज्झई ।
सोच्चा नेयाउयं मग्गं, जं भुज्जो परिभस्सई ॥२५॥ इस मानव-भव में जो काम-भोगों से निवृत्त नहीं होता उसका अपना आत्म-प्रयोजन विनष्ट हो जाता है। क्योंकि न्यायमार्ग को बार-बार सुनकर भी वह उससे भ्रष्ट हो जाता है ॥२५॥
He, who does not renounce the rejoicings and amusements in this human birth, misses the true goal of his soul; because hearing the right path again and again, he slips and goes astray. (25)
इह काम-णियट्टस्स, अत्तढे नावरज्झई ।
पूइदेह-निरोहेणं, भवे देवे त्ति मे सुयं ॥२६॥ किन्तु इस मनुष्य जन्म में काम-भोगों को त्यागने वाले (निवृत्त होने वाले) का आत्मार्थ नष्ट नहीं होता, वह इस मलिन औदारिक शरीर के छूट जाने पर देव बनता है-ऐसा मैंने सुना है ॥२६॥
But the renouncer of merriments of this human life does not lose the aim of his soul. He becomes god bereaving this vile body-I have heard so. (26)
इड्ढी जुई जसो वण्णो, आउं सुहमणुत्तरं ।
भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु, तत्थ से उववज्जई ॥२७॥ (देवलोक से च्यवन करके) वह पुनः मनुष्य जन्म ग्रहण करता है तो ऐसे उत्तम कुल में जन्म लेता है जहाँ उसे श्रेष्ठ ऋद्धि, द्युति, यश, वर्ण, आयु और सुख की प्राप्ति होती है ॥२७॥
After completing the god-duration he takes birth as a man, in such a high family where he gets wealth, beauty, glory, fame, long life and happiness. (27)
बालस्स पस्स बालत्तं, अहम्मं पडिवज्जिया ।
चिच्चा धम्मं अहम्मिढे, नरए उववज्जई ॥२८॥ (हे साधक !) बाल जीव की अज्ञानता को देख। वह अधर्म को स्वीकार करता है, धर्म का त्याग करता है और अधार्मिक बनकर नरक में उत्पन्न होता है ॥२८॥
Look at the imprudence of the ignorant, who practises unrighteousness, renounces righteousness and becoming irreligious takes birth in hell. (28)
धीरस्स पस्स धीरत्तं, सव्वधम्माणुवत्तिणो । . चिच्चा अधम्मं धम्मिट्ठे, देवेसु उववज्जई ॥२९॥
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