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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र Mh
Many are of the opinion that it is possible to relieve from all miseries by the knowledge of right elements. There is no need of abstaining from sins. (9)
६१] षष्टम अध्ययन
भणन्ता अकरेन्ता य, बन्ध - मोक्खपइण्णिणो । वाया - विरियमेत्तेण, समासासेन्ति अप्पयं ॥१०॥
जो बंध मोक्ष के सिद्धान्तों की प्रतिज्ञा (स्थापना) तो करते हैं लेकिन मोक्ष - प्राप्ति के लिए कुछ भी क्रिया नहीं करते, वे वाणी की वीरता से अपने आप को आश्वासन देते रहते हैं ॥१०॥
Talking and acknowledging the maxims of bondage and liberation but not acting in accordance of these tenets; such persons seek comforts for their soul in mighty words. (10)
न चित्ता तायए भासा, कुओ विज्जाणुसासणं ? विसन्ना पाव - कम्मेहिं, बाला पंडियमाणिणो ॥ ११ ॥
विभिन्न प्रकार की भाषाएँ और अनेक प्रकार की विद्याओं का शिक्षण भी रक्षा करने में समर्थ नहीं है। स्वयं को पण्डित ज्ञानी मानने वाले मूढ़ अज्ञानी पापकर्मों में डूबे रहते हैं ॥११॥
Various types of languages or clever talking and study of science, literature etc, are not capable of protection nor helpful for attaining liberation. The fools, ignorants of truth, sinking lower and lower through their sins, believes themselves to be the wise, truth knowing men. ( 11 )
जे केई सरीरे सत्ता, वण्णे रूवे य सव्वसो । मणसा कायवक्केणं, सव्वे ते दुक्खसंभवा ॥१२॥
जो शरीर में, शरीर के वर्ण और रूप में मन-वचन काया से सर्वथा आसक्त हैं, वे सभी अपने लिए दुःख का ही उपार्जन करते हैं ॥१२॥
Those who have attachment for shape, colour, form of body with mind, speech and activities, they only create misery for themselves. (12)
आवन्ना दीहमद्धाणं, संसारम्मि अणंतए । तम्हा सव्वदिसं पस्स, अप्पमत्तो परिव्वए ॥१३॥
ऐसे लोगों ने इस अनन्त संसार में लम्बे मार्ग को ग्रहण किया है। इसलिए साधक को सभी दिशाओं ( जीवों के उत्पत्ति स्थानों) को देखकर अप्रमत्त भाव से विचरण करना चाहिए ॥१३॥
Those persons have adopted a long route of this un-ending world. Hence adept, knowing all the birth places of the beings, should always be careful. (13)
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बहिया उड्ढमादाय, नावकंखे कयाइ वि ।
पुव्वकम्म - खयट्ठाए, इमं देहं समुद्धरे ॥१४॥
ऊर्ध्व (मोक्ष का) लक्ष्य अपनाकर साधक कभी बाह्य विषयों की आकांक्षा न करे । इस शरीर को केवल पूर्वबद्ध कर्मों को क्षय करने के लिए धारण करे ॥ १४ ॥
Determining the aim of liberation, adept should never desire worldly objects, but sustain his body only to annihilate previously bound karmas. (14)
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