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५३ ] पंचम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Some householders are superior to some mendicants in restrain; but the ascetics observing pure conduct are superior to all house-holders. (20)
चीराजिणं नगिणिणं,
जडी-संघाडि-मुण्डिणं । एयाणि वि न तायन्ति, दुस्सीलं परियागयं ॥२१॥
चीवर - वस्त्र, अजिन - मृगचर्म, नग्नता, जटाधारण, चिथड़ों की कंथाधारण, शिरोमुण्डन- ये बाह्य वेश भी दीक्षा धारण किये हुए दुःशील- दुराचारी साधु की दुर्गति में जाने से रक्षा नहीं कर सकते ॥ २१ ॥
Cloths, bark, deer-skin, nudity, mat, tonsure of hairs, rags-these outward tokens cannot save a sinful ascetic from the lower births. (21)
पिण्डोलए व दुस्सीले नरगाओ न मुच्चई ।
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भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुव्वए कम्मई दिवं ॥२२॥
भिक्षा द्वारा अपना जीवन निर्वाह करने वाला भिक्षु भी यदि दुःशील- दुराचारी है उसे नरक में जाना ही पड़ता है और सुव्रती भिक्षु हो अथवा गृहस्थ वह स्वर्ग ही प्राप्त करता है ॥२२॥
Getting his livelihood by alms if such a mendicant is sinful in deeds and thoughts, he is bound to go to hell; while pious mendicant and householder goes to heaven. (22)
अगारि - सामाइयंगाई, सड्ढी काएण फासए । पोसहं दुहओ पक्खं, एगरायं न हावए ॥२३॥
श्रद्धालु गृहस्थ साधक सामायिक साधना के सभी अंगों की काया से ( मन-वचन से भी) साधना करे तथा शुक्ल और कृष्णपक्ष दोनों में ( पर्व तिथियों को) पौषध करे, एक भी पर्व रात्रि को पौषध न छोड़े ॥ २३ ॥
A faithful householder should practise equanimity performance ( सामायिक साधना) along with all its essentials everyday with devoted mental, vocal and corporeal activities. He should also observe poșadha (a fortnightly religious rite) on ceremonial both days of black and white fortnight of every lunar month; missing not a single ceremonial day. (23)
एवं सिक्खा - समावन्ने, गिह-वासे वि सुव्वए । मुच्चई छवि - पव्वाओ, गच्छे जक्ख- सलोगयं ॥२४॥
इस प्रकार धर्म शिक्षा से सम्पन्न गृहवासी - गृहस्थ में रहता हुआ सुव्रती भी औदारिक शरीर को छोड़कर देवलोक - देवनिकाय में उत्पन्न होता है ॥२४॥
Planted in this discipline, a householder firm in his vows, after quitting his mortal body of flesh and bones takes birth in heavenly abode as a god. (24)
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अह जे संवुडे भिक्खू, दोन्हं अन्नयरे सिया । सव्व - दुक्ख - प्पहीणे वा, देवे वावि महढिए ॥ २५ ॥
संवृत (पांच आम्रवों का निरोध करने वाला) भिक्षु की दो ही गति संभव हैं; या तो वह सभी दुःखों से सदा के लिए मुक्त हो जाता है अथवा महर्द्धिक देव बनता है ॥२५॥
By checking influx a mendicant can attain one of the two states-either he gets liberation from all miseries or be a god with great fortune. (25)
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