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卐 [उ.] आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उनको तीन दिन के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। वे पृथ्वी ॥
तथा कल्पवृक्षों से प्राप्त पुष्प, फल आदि का आहार करते हैं। म [प्र. ] भगवन् ! उस पृथ्वी का आस्वाद कैसा होता है ? [ [उ. ] गौतम ! गुड़, खाँड़, शक्कर, मत्स्यंडिका-विशेष प्रकार की शक्कर, राब, पर्पट, मोदक-एक 卐 विशेष प्रकार का लड्डू, मृणाल, पुष्पोत्तर (शर्करा-विशेष), पद्मोत्तर (एक प्रकार की शक्कर),
विजया, महाविजया, आकाशिका, आदर्शिका, आकाशफलोपमा, उपमा तथा अनुपमा-ये उस समय के ॐ विशिष्ट आस्वाद्य पदार्थ होते हैं।
[प्र. ] भगवन् ! क्या उस पृथ्वी का आस्वाद इनके आस्वाद जैसा होता है ?
[उ. ] गौतम ! यह कथन उपयुक्त नहीं है। उस पृथ्वी का आस्वाद इनसे इष्टतर-सब इन्द्रियों के लिए इनसे कहीं अधिक सुखप्रद, (अधिक प्रियकर, अधिक कांत, अधिक मनोज्ञ-मन को भाने वाला) तथा अधिक मन को रुचने वाला होता है।
[प्र. ] भगवन् ! उन पुष्पों और फलों का आस्वाद कैसा होता है?
[उ. ] गौतम ! तीन समुद्र तथा हिमवान् पर्यन्त छः खण्ड के साम्राज्य के अधिपति चक्रवर्ती सम्राट् ॥ का भोजन एक लाख स्वर्ण-मुद्राओं के व्यय से निष्पन्न होता है। वह अति सुखप्रद, प्रशस्त वर्ण, (प्र गन्ध, प्रशस्त रस तथा) प्रशस्त स्पर्शयुक्त होता है, आस्वाद योग्य, विशेष रूप से आस्वाद योग्य, दीपनीय-जठराग्नि का दीपन करने वाला, दर्पणीय-उत्साह तथा स्फूर्ति बढ़ाने वाला, मदनीय-मस्ती देने , वाला, बृहणीय-शरीर की धातुओं को संवर्धित करने वाला एवं सभी इन्द्रियों और शरीर को आह्लादित करने वाला होता है।
[प्र. ] भगवन् ! उन पुष्पों तथा फलों का आस्वाद क्या उस भोजन जैसा होता है ?
[उ.] गौतम ! ऐसा नहीं होता। उन पुष्पों एवं फलों का आस्वाद उस भोजन से अधिक सुखप्रद होता है। ____29. [Q.] Reverend Sir ! After how much period those human beings 卐 had a desire for taking food ?
(Ans.] Blessed Gautam ! They had desire for food only after three days. They were consuming flowers and fruit of earth and kalpa trees.
[Q.] Reverend Sir! What was the taste of that earth ?
[Ans.] Gautam ! Jaggery, brown sugar, sugar, special type of sugar, 卐 syrup, parpat, ball-like sweet, mrinal, pushpottar, padmottar, vijaya, mahavijaya, akashika, adarshika, akash-phalopama, upama and anupama--all these were extremely tasty things of that time.
(Q.) Reverend Sir! Was that land sweet in taste like above-mentioned things?
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|द्वितीय वक्षस्कार
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Second Chapter
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